पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/६७

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प्रकरण १ श्लो० २९


श्रपने जन्म से लेकर कोई दुःखी और कोई सुखी

क्रिस हेतु से होते हैं ? प्रथम प्रवृत्ति किस कारण से होती है ? शरीर भी किस कारण से होता है? मरा हुश्रा क्यै नहीं जानता ? वैसा स्वभाव ही है ऐसा कहो तो वह कारण सवत्र समान होने से दीप ओर बीजांकुर के समान उसका काये भी एकसा ही होगा यह सबको विदित हैं के पूव श्रात्मा की सिद्धि हुई ॥२8 ।।
( स्वजन्म प्रभृति ) अपने जन्मकाल से लेकर ( कश्चित् दुःखी ) कोई तो प्रतिकूल वेदनीय लक्षण दुःख वाला ही रहता हैं, (श्रपरश्च) और कोई दूसरा (सुखयुत:) अनुकूल वेदनीय लक्षण सुख के सहित ही रहता है, ( कस्य हेतोः) यह सुख दु:ख की व्यवस्था किस कारण से है ? (आद्या प्रवृत्तिः कस्मात् हेतोः:) और प्राणियों की पहली स्तन्यपान आदि की प्रवृत्ति भी किस कारण से होती है ? (तनुरपि च) और शरीर भी (कुतः) क्रिस कारण से होता है ? (प्रमीतः) मरा हुआ (किं न वेत्ति ) क्यों नहीं जानता अर्थात् देहरूप श्रात्मा मरा हुआ भी इष्ट श्रनिष्ट को क्यों नहीं जानता ?
शंका-शरीर ही श्रात्मा है इस मतमे शरीरों के सुख दु:रव की विचित्रता का कारण ( स्वाभाव्यम्) स्वभाव ही है अर्थान् निज निज धर्मवत्व ही है
समाधान-( हेतुसाम्ये ) वहां कारण समान होने से ( स्वाभाव्यम्) स्वभाव भाव श्रथन् निज धर्मवत्व भी तो