पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/३८

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स्वाराज्य सिद्धिः


सृष्टि ही सिद्ध नहीं हुई तो अदृष्ट कहां से आवेगा और उस प्रधान की प्रवृत्ति में कारण हो जावेगा ? इसी तात्पर्या से मल में नियति को सर्ग पूर्वा कहा है । अर्थात् प्रवृत्ति से सृष्टि के होने पर ही अदृष्ट हो सकता है (न पूर्वम्), पूर्व नहीं, क्योंकि अदृष्ट शरीरका कायें है । प्रवृत्ति से पहिले ही अन्य पूर्व सृष्टि से सिद्ध श्रदृष्ट को उस प्रवृत्ति के हेतु रूप कल्पना करोगे तो उस सृष्टि का हेतु जो प्रधान की प्रवृत्ति है उस प्रधान की प्रवृत्ति के हेतु रूप अन्य अदृष्ट की कल्पना भी अवश्य करनी पड़ेगी और ऐसी कल्पना करने से अन्योन्याश्रय दोष से लेकर श्रन वस्थांत दोष प्राप्त होंगे । इतना ही नहीं, सांख्यवादी कापिल के मत में पुरुष सर्वथा असंग है, इसलिये (बंधो निर्हेतुकः स्यात् ) बंध भी निर्हतुक ही हो जावेगा और सांख्यवादी पुरुष को कारणों का संबंध मानेगा तो सर्वथा पुरु घासंगत्व सिद्धांत नष्ट हो जावेगा, (अथ) बंधके निर्हतुक होने के अनंतर (कथं न बंध मोक्षाव्यवस्था) इस पुरुष को बंध है श्रौर इस पुरुषको मोक्ष है, इस व्यवस्था का अभाव किस प्रकार नहीं होगा ? अवश्य होगा । भाव यह है, विना ही संबंध के प्रधान को बंध मोक्ष की संपादकता संभव होने पर मुक्तपुरुष को बंध प्राप्त हो जावेगा और बद्ध पुरुष को मोक्षः प्राप्त हो जावेगा, क्योंकि कारण दोनों में समान है। यही बंध मोक्ष की अव्यवस्था का रूप है । (मतिमान्) बुद्धिमान् पुरुष (निःसौख्यम्) निरानंद रूप अर्थात् आनंद रहित रूप (मोच मपि) मोक्ष. की भी (न स्पृहयति ) इच्छा नहीं करता, अन्य पदार्थ की इच्छा नहीं करता यह वार्ता तो कहनी ही क्या है! कापिलों के मत में निःसौख्य ही मोक्ष है, इसलिये कोई बुद्धिमान् पुरुष कापिलों के मत में मुमुलु नहीं होगा । (तेन),