पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/३५

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प्रकरणं १ श्लो० 16

श्रब अन्यान्य वादियों ने जो जो जगत् के कारण अपनी अपनी से कहे हैं उन कारणों की अयोग्यता को और वकल्पना श्रति स्मृति प्रसिद्ध स्वोक्त माया शबल ब्रह्म रूप कारण की योग्यता को कहते हैं।

सांख्ये: प्रख्यापितं न क्षममिह जगतां निर्मि

तो तत् प्रधानं हेतु नेतादृशेऽथे प्रभवति गदि

तस्तार्किकैरीश्वरोपि । नाणुः काणाद बोद्ध

रुक्षपणक भणितो नापि नि:साति शून्यं तस्मा

दास्माकमेव श्रति गदित परब्रह्म सिद्ध निदा

नम् ।।१६।।

साख्यशास्र म इस जगत का रचना जस प्रधान स कथन की है वह प्रधान जगत् की रचना करने में असमर्थ है, तार्किकों का कहना है कि जगत् की रचना में ईश्वर निमित्त कारण है यह भी नहीं हो सकता, कणाद बाँद्ध श्रणु का कथन करते हैं वह भी इसमें असमर्थ है और साक्षी रहित शून्य भी जगत्की रचनामें असमर्थ है, इसीसे हम श्रुति में कथन किये हुए परब्रह्म को जगत् का अभिन्न निमित्तोपादन कारण मानते हैं । यह सिद्ध हुश्रा ॥१६॥ ( इ.) इस कारण-वाद विषय में जो ( सांख्यै:) कपिल श्रौर पतंजलेि महर्षि के मत वाले प्राचा ने (जगताम्) इम