पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२१०

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स्वाराज्य सिद्धिः

अपने निज देश से तुझे पृथक् करके और शुद्ध स्वरूप बोध रूप तेरे नेत्रों को बांध करके और निर्मलत्व आदिक तेरे भूषणों को इर करके दुःख बाहुल्य सहाय शून्य नाना योनि के शरीर रूप बन में तुझे छोड़ दिया है । जिसके सर्व भूषण छिन गये हैं, ऐसे बद्धनेत्र जगल में पड़े हुए.धनी पुरुष के नेत्रों को (पांर्थ:इव) कृपालु पथिक पुरुषने खोल करके कहा कि इस दिशा में तेरा देश है इस दिशा को चला जा । तब वह पुरुष पथिकों द्वारा नेत्र बंधन हट जाने से उन्हीं के उपदेश से विदित हुए मार्ग से प्राम से ग्रामान्तर पूछता पूछता निज देश को प्राप्त हो गया क्योंकि पथिकों के उपदेश किये हुए मार्ग रूप अर्थ के ग्रहण करने में वह समर्थ था तथा स्वयं भी ऊहापोह में कुशल और समर्थ था । तैसे ही, (एष गुरुणा विमुक्त बंधोऽसि) रागद्वेष पुण्य पाप आदिक तस्करों से अनेक अनर्थ युक्त देह अरण्य में मोह पटल से बद्ध विवेक दृष्टि वाला दैवयोग से अर्थात् अपने श्रज्ञान पुण्य पुज प्रभाव से प्राप्त श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु द्वारा नू बंधनों से रहित हैं, तू सचिदानन्द परिपूर्ण ब्रह्म रूप है। इत्यादि प्रकार से उपदेश किया हुआ अति सूक्ष्म रूप भी ब्रह्म तत्व को ‘अहं ब्रह्मास्मि' मैं ब्रह्म हूं इस प्रकार जान जाता है। इस कारण, हे प्रिय दर्शन, (सत् ब्रह्म तत्त्वमसि) वह सत् रूप ब्रह्मा तू ही है । तू बुद्धिमान् है इसलिये मेरे उपदेश से वह ब्रह्म मैं ही हूँ इस प्रकार निश्चय कर और उस निश्चय से (सुखं स्व धाम याहि ) अपरिच्छिन्न परमानन्द स्वरूप स्वस्वरूप भूत निज धाम को प्राप्त हो ।॥५५॥
शंका -जेसे श्रज्ञानी वाक श्रादिकों के लय क्रम' से
मृत्यु (मरण ) को प्राप्त होकर पुन: जन्म बंधन में ही आजाता
है, कन्या तैसे ही ज्ञानी भो जन्म. बंधन में आजाता है वा नहीं?