स्वर्ग से गिरते दुःख हेाता है, बहुत प्रकार के नरकों
के समान गर्भवास में दुःख होता है, बाल्यावस्था में
स्वतंत्रता रहित होने से मच्छर को हटाने में भी असमर्थ,
होता है, युवानीमें क्रोध, धन पुत्र स्रीमें श्रासक्ति, दरिद्रता,
शत्रु से तिरस्कार आदि दुःख, वृद्धावस्था में शोक, मोह,
इन्द्रियोंका नाश, कफ आदि रोगसे दुःख तथा अन्तमॆ मरण
में अति दुःख होता है ॥५३॥
विचार कर देस्रो (स्वर्गातू) पुण्य भोगभूमिलोक से
(प्रपाते ) इस पृथिवी लोक में गिरने पर उस लोक के भोगों के
वियोग जन्य (दुःखम्) दुःख होता है। फिर (बहुविधि तरके)
नाना प्रकार क नरका क समान ( गाभवास ) माता क गर्भाशय
में (अति दुःखम्) अति दुःख होता है (शैशवे) बाल्य अवस्था
में (निःस्वातंत्र्याशनाया ग्रह गद् रुदितै: ) मशक मात्र के भी
निवारण करने में स्वाधीनता के अभाव से भोजन की इच्छा होने
पर, बालग्रहों से अथवा रोगों से कष्ट्र होने पर रोना ही पड़ता है।
इसलिये इसमें महान् दुःख है । ( तारुण्ये) नव युवक अवस्था
में (अमर्ष लोभ व्यसन परि भवोद्वेग दारिद्रय दुःखम्) क्रोधसे,
धन, स्त्री, पुत्र आदिकों में रागकी अधिकता से, स्री श्रादिकों में
श्रासक्ति से, शत्रु आदिकों द्वारा किये गये तिरस्कार से, चोरादि
उपद्रव कृत व्यग्रता से अर्थात् विक्षेप से तथा दैवयोग से, धन के
श्रभाव में दरिद्रता से महान् दुःख होता है। (वार्द्धक्ये) वृद्धा
वथा में (शोक मोहेन्द्रिय विलय गदैः दुःखम्) इष्ट वस्तु के
पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१०८
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
[ 100
स्वाराज्य सिद्धिः