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पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/९९

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अवन्तिसुन्दरी (३२) अविमारक (२) अवन्तिसुन्दरी-(ना.कृ) वेङ्कटरामराघवन का लिखा प्रेक्षणक है; इसका आधार अवन्तिसुन्दरी लिखित प्रेक्षणक ही है। अवलोकिता- (ना.पा) मालती माधव (दे) में कामन्दकी की सहायिका है। यह अपनी सहयोगिनी सौदामिनी के साथ मिलकर मालती को कपालकुण्डला के चंगुल से बचाती है। अविनाशी स्वामी- (ना.का) शृङ्गारतिलक (दे) भाण के लेखक । ये आत्रेयगोत्र के वन्दवासी परिवार में उत्पन्न हुए थे। इनका समय १९वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। अविमारक- (नाक) भास (दे) कृत ६ अंकों का नाटक । यह नाटक लोककथा पर आधारित है। दीर्धतपस् ऋषि के शाप से सौवीर राज का पुत्र विष्णुसेन १ वर्ष के लिए सपरिवार चाण्डाल बन जाता है। वह गुप्त रूप से कुन्तिभोज के नगर में रहने लगता है। वहां वह अविमारक नामक असुर को मार डालता है इसलिये उसका भी नाम अविमारक पड़ जाता है। वह अपनी एक भाञ्जी कुरंगी की एक विगड़े हाथी से रक्षा करता है। जब राजा यह समाचार सुनता है तब अविमारक से ही पुत्री कुरंगी का विवाह कर देना चाहता है। किन्तु अविमारक इतना निम्नवंश का है कि यह सम्बन्ध सम्भव नहीं हो पाता। उधर कुरंगी और अविमारक एक दूसरे के वियोग में तड़पते हैं। उनका प्रेम सीमातीत हो गया है। एक वार धात्री की सहायता से अविमारक कुरंगी के कक्ष में पहुंच जाता है; किन्तु पकड़ लिया जाता है और उसकी आकाङ्क्षा पूरी नहीं हो पाती। वहआग से जलकर आत्महत्या करना चाहता है। किन्तु अग्निदेव उसे अस्वीकृत कर देते हैं और वह बच जाता है। तब पर्वत से गिर कर आत्महत्या करना चाहता है किन्तु वहां उसे एक विद्याघर मिल जाता है। वह उसे एक अंगूठी देता है जो जादुई है और उससे वह अदृश्य रूप में कुरंगी के कक्ष में पहुंचकर प्रत्येक रात में अपनी प्रेमिका का उपभोग कर सकता है। इस कार्य में उसे विदूषक की भी सहायता मिलती है । इसके पहले कुरंगी ने भी आत्महत्या की चेष्टा की थी किन्तु वह भी बच गई थी। जब राजा कुन्तिभोज को इनके प्रच्छन्न विहार की सूचना मिलती है तब वह परेशान हो जाता है और कुरंगी का विवाह अपने दूसरे भाञ्जे जयवर्मा से कर देने का विचार करता है। इसी समय नारद आ जाते हैं और बतलाते हैं कि विष्णुसेन वस्तुतः काशीनरेश की पत्नी सुदर्शना में अग्नि द्वारा उत्पन्न किया हुआ पुत्र है और उसका केवल पालन पोषण सौवीर राज के यहां हुआ है। वास्तविकता जान कर राजा कुंरगी का विवाह विष्णुसेन (अविमारक) से कर देता है- यहां नाटक समाप्त हो जाता है। _____ यह एक शृङ्गार प्रधान नाटक है। भावना की तीव्रता को अभिव्यक्त करने में भास को अच्छी सफलता मिली है। घटनाओं और कार्य व्यापारों की क्षिप्रता और आवृत्ति जो भास की शैली की विशेषता है इस नाटक में भी देखी जा सकती है। विदूषक (दे) के चित्रण में कवि ने अधिक निपुणता दिखलाई है। वह स्वामिभक्तसेवक की भूमिका भली