पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१६

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श्रीविष्णुगीता।

विषय धिस्थ होते हुए देवगण विराटरूपका दर्शन करते हुए स्तुति  करने लगे ................ ...... ... .१३२

देवताओंके द्वारा विराटरूपका वर्णन । (४) महाविष्णुके विराटरूपका विस्तृत और अद्भुत वर्णन ... ... ... ... ... ... ... ... १३३-१४० (५) विराट रूपके दर्शन अधिक क्षणतक करने में असमर्थ होकर देवताओंके द्वारा विभूति रूपमें दर्शन देनेके उपायकी प्रार्थना .............. ... ... १४०-१४१

महाविष्णुकी आज्ञा । (६)विस्तृत और अद्भुत रूपसे विभूतिवर्णन, भगवान् के सर्वव्यापक होनेसे विभूतियोका अनन्तत्व, विभूतिमान्का लक्षण, भगवत्स्वरूपवर्णन, विभूति विराट रूप और आत्मस्वरूपका मन बुद्धि और समाधिसे सम्बन्ध, भगवान्के शरण होनेकी आज्ञा .................. १४१-१४७ VER-

देवताओंकी जिज्ञासा । (७) देवतानोंमें साम्यवुद्धिकी उत्पत्ति और उसके द्वारा इस गीताके ज्ञानका प्रचार सर्वत्र और विशेषतः कर्मभूमिमें होनेकी प्रार्थना .... ... १४७-२४४ महाविष्णुकी आज्ञा। (८) भगवान्की प्रसन्नता, इस गीताका विष्णुगीता नामसे नामकरण, द्वापरके अन्तमे कृष्णावतार रूपसे पुनः भारतमें इस ज्ञानके उपदेश करनेकी कृपाका प्रकाश करना ... R) इस गीताका माहात्म्य, इसके द्वारा त्रिविध ताप निवृत्तिके विधानप्रसङ्गमें आधिदैविक ताप निवृत्ति के लिये "विश्वम्भर"याग करनेकी आज्ञा, इसके द्वारा विष्णुयज्ञ करने से सब व्याधियोंकी निवृत्ति, विस्तृत फलश्रुति, इस गीता अधिकारी और इसके द्वारा जगत्में शान्तिप्रचार ... ... धताप