पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९९

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६७८ वायुपुराणम् सूत उवाच ॥१२२ निःशेषेषु च सर्वेषु तदा मन्वन्तरेविह | अन्तेऽनेकयुगे तस्मिन्क्षीणे संहार उच्यते सप्तैते भार्गवा देवा अन्ते सन्वन्तरे तदा । भुक्त्वा त्रैलोक्यमध्यस्था युगाख्यां ह्येकसप्ततिम् पितृभिर्मनुभिश्चैव सार्धं सप्तर्षिभिस्तु ये | यज्वानश्चैव तेऽप्यन्ये तद्भक्ताश्चैव तैः सह महर्लोकं गमिष्यन्ति त्यक्त्वा त्रैलोक्यमोश्वराः । ततस्तेषु गतेषूर्ध्वं क्षीणे मन्वन्तरे तदा ततः स्थानानि शून्यानि स्थानिनां तानि वै द्विजाः । प्रभृश्यन्ति विमुक्तानि ताराऋग्रस्तथा ॥ ततस्तेषु व्यतीतेषु त्रैलोक्यस्येश्वरेण्विह | सेन्द्रास्तेषु महर्लोकं यस्मिस्ते कल्पवासिनः जिताद्याश्च गणा ह्यत्र चाक्षुषान्ताश्चतुर्दश | मन्वन्तरेषु सर्वेषु देवास्ते व महौजसः ततस्तेषु गतेषूर्ध्वं सायो (यु) ज्यं कल्पवासिनाम् | समेत्य देवास्ते सर्वे प्राप्ते संकलने तदा महर्लोकं परित्यज्य गणास्ते वै चतुर्दश । सशरीराश्च श्रूयन्ते जनलोकं सहानुगाः एवं देवेष्वतीतेषु महर्लोकाज्जनं प्रति । भूतादिष्ववशिष्टेषु स्थावरान्तेषु चाप्युत शून्येषु लोकस्थानेषु महान्तेषु भूरादिषु । देवेषु च गतेपूर्ध्वं सायो (यु) ज्यं कल्पवासिनाम् ॥११६ ॥१२० ॥१२१ ॥१२४ ।१२५ ॥१२६ ॥१२७ ॥१२८ ॥१२६ सूत बोले :- ऋषिवृन्द ! सभी मन्वन्तर जव समाप्त हो जाते हैं और उनमें अनेक युग व्यतीत हो जाते हैं, तब सृष्टि का संहार होता है - ऐसा कहा जाता है । अन्तिम मन्वन्तर में ये सात भृगुवंशोत्पन्न देवगण इकहत्तर युगों तक समस्त त्रैलोक्य में विराजमान रह कर समस्त भोगो का उपभोंग करेंगे और अन्त में पितरों, मुनियों, सप्तषियों, अन्यान्य यज्ञ परायण यजमानों एवं भक्तों के साथ तीनों लोकों का परित्याग करके वे सर्वशक्ति सम्पन्न देवगण महर्लोक को चले जायेंगे |११६-१२१३। इस प्रकार जब वे सब छोड़ कर मन्वन्तर की समाप्ति हो जाने पर चले जायेगे तव यह त्रैलोक्य निराधार हो जायगा | द्विजवृन्द ! उस समय सभी स्थान शून्य हो जायगा, स्थानी ( अभिमानी ) देवगण भी अपने अपने स्थान छोड़ देंगे | तारायें, नक्षत्र, ग्रहादि निरवलम्ब होकर विध्वंस हो जाते हैं | १२२ १२३ | त्रैलोक्य के समस्त सामर्थ्य सम्पन्न शक्तियों के समाप्त हो जाने पर इन्द्रादि प्रमुख देवगण, चाक्षुषादि समस्त मनुगण एवं अन्याय महान् तेजस्वी देवगण -सभी महर्लोक में जाकर वहीं कल्पपर्यन्त स्थिर निवास करनेवाले देवताओं की समानता प्राप्त करेंगे । इस प्रकार महर्लोक में कल्पवासी अन्यान्य देवताओं के साथ मिलने पर जब प्रलय का जोर बहुत अधिक बढ़ जायगा, तब वे चौदहो मनुगण अपने सहगामी अनुचरादि के साथ सशरीर जनलोक चले जाते हैं - ऐसा सुना जाता है ११२४-१२७॥ देवताओं के महर्लोक से जनर्लोक में चले जाने पर जब केवल स्थावर जीवनिकाय शेष रह जाते हैं, मह, भू आदि सभी लोकों के स्थान शून्य हो जाते हैं, देवगण कल्पपर्यन्त निवास करनेवाले अन्यान्य देवताओं के समान स्थान प्राप्तकर ऊपर चले