पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९८

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शर्तेतमोऽध्यायः ६७७ + अपरा ( परांचा) पि मनोः सुनून्सप्तैतान्विद्धि चाक्षुषान् । बृहदाद्यानि सामानि कनिष्ठान्सप्त तान्विदुः सप्त लोकाः परित्रास्ते भाजिराः सप्त सिन्धनः ॥११२ वाचावृद्धानृषीन्विद्धि मनोः स्वायंभुवस्य वै । सर्वे मन्वन्तरेन्द्राध्य विज्ञेयास्तुल्यलक्षणाः तेजसा तपसा बुद्ध्या बलश्रुतपराक्रमैः । त्रैलोक्ये यानि सत्त्वानि गतिमन्ति ध्रुवाणि च ॥ सर्वश: स्वैर्गणैस्तानि इन्द्रास्तेऽभिभवन्ति व भूतापवादिनो हृष्टा मध्यस्था भूतवादिनः | भूतानुवादिनः सक्तास्त्रयो वेदाः प्रवादिनाम् अग्नीध्रः काश्यपश्चैव पौलस्त्यो भागधश्च यः | भार्गवो ह्यग्निबाहुन शुचिराङ्गिरसस्तथा ॥ ओजस्वी सुबलश्चैव भौत्यस्यैते मनोः सुताः सावर्णा मनवो होते चत्वारो ब्रह्मणः सुताः । एकौ वैवस्वतश्चैव सावर्णो मनुरुच्यते रोच्यो भौतश्च यौ तौ तु मनोः पौलहभार्गदौ । भौत्यस्यैवाऽऽधिपत्ये तु पूर्णः कल्पस्तु पूर्यते ॥११४ ॥११५ ॥११६ ॥११७ ॥ ११८ को ही सात कनिष्ठ देवगण बतलाते हैं । सातों लोक पवित्र (परित्रस्त ) एवं सातों समुद्र भाजर (भाजिर ) नाम से वतलाये जाते हैं । ११० - ११२ । सातों ऋषियों को वाचावृद्ध देवता जानो । स्वायम्भुव मनु से लेकर सभी मनुओं के अधिकार काल में जितने इन्द्र होते हैं, उन सबको एक ही प्रकार के स्वभाव, मर्यादा एवं प्रभाव सम्पन्न जानना चाहिए | अपने तेज, तपस्या, बुद्धि, शास्त्रीय ज्ञान, बल, पराक्रम एवं गुणों से वे इन्द्रगण इस त्रैलोक्य में जितने भी स्थावर जगम जीवनिकाय है, सब का अतिक्रमण करते है, अर्थात् उनके समान कोई अन्य नहीं होता । केवल ब्रह्म सत्य है ।११३-११४। समस्त स्थावर जंगमात्मक जगत् मिथ्या है, इन भूतों की कोई सत्ता नहीं है— ऐसे मतवाले भूतापवादी हैं, और वे ही सच्चे अर्थों में प्रसन्नचित रहते है, ये जीव जगत् सब नित्य एवं अनित्य — दोनों है, वे भूतवादी है, उन्हें मध्यकोटि का समझना चाहिए, संसार एवं उसकी वस्तुएँ सभी निय एवं अविनश्वर है ऐसा जानकर जो उसी मे अनुरक्त रहते है, वे भूतानुवादी है, उत्कृष्ट पण्डितो द्वारा जगत् की ये तीन व्याख्याएं की जाती हैं । अग्नीध्र, काश्यप, पौलस्त्य, मागध, भागवं, अग्निबाहु, अंगिरस्, शुचि और परम तेजस्वी सुबल – ये भोत्यमनु के अधिकार काल में उत्पन्न होनेवाले उनके पुत्र हैं १११५-११६ । उपर्युक्त ये चार मनु गण, जो सावर्ण मनु के नाम से विख्यात हैं, वे ब्रह्मादि चारों देवताओं के पुत्र हैं, विवस्वान् सूर्य के पुत्र एक वैवस्वत मनु भी सावर्ण मनु कहे जाते है । रोच्य और भोत्य -- ये दो पुलह और भार्गव गोत्रीय हैं। इन्हीं भौत्य मनु के अधिकार काल में कल्प की परिसमाप्ति हो जाती है ।११७-११८) 1 मस्ति । + एतदधंस्थाने सप्त सांस्तान्भागान्विद्धि चाक्षुषसंज्ञवानिति क. पुस्तके | ग. ङ. पुस्तकयेरेतदधं त्रुटित- x अत्राध्यायसमाप्तिः खं. पुस्तके | फा० - १२३