पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९६

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६७५ शततमोऽध्यायः 1180 ॥६१ ॥६२ ॥६३ ब्रह्मणो मानसा ह्येत एकैको दशको गण | अरुन्तिजो हविषचैष ] विद्वान्यश्च सहस्रशः पर्वतानुचरश्चैव अपशुश्च मनोजचः । ऊर्जा स्वाहा स्वधा द्वारा दौते हरिताः स्मृताः तपोजानिभृतिश्चैव वाचा बन्धुत्र यः स्मृतः । रजस्चैव तु राजश्व स्वर्णपादस्तथैव च व्युष्टिविधिश्च वै देवो दशैते रोहिताः स्मृताः | उषिताद्यास्तु ये देवालय स्त्रिशत्प्रकीर्तिताः देवान्सुमनसो विद्धि सुकर्माणो निबोधत | सुपर्वा वृषभः पृष्टः कृषिद्युम्नो विपश्चितः विक्रमश्च क्रमश्चैवे निभृतः कान्त एव च । एते तुकर्मणो देवा सुतांश्चैषां निबोधत वर्षोदितस्तथा जिष्टो वर्चस्वी द्युतिमान्हविः | शुभो हविष्कृतात्प्राप्तिर्व्यापृथो वशमस्तथा सुपारा मानता (श्र्व गणा) स्त्वेते देवा वै संप्रकीर्तिताः । तेषामिन्द्रस्तु विज्ञेय ऋऋतधामा महायशाः ॥१५ कृतिर्वसिष्ठपुत्रस्तु शात्रेयः सुतपास्तथा । तपोमूर्तिश्चाङ्गिरसस्तपस्वी फाश्यपस्तथा तपोऽशयानः पौलस्त्यः पुलहश्च तपोरतिः | भार्गवः सप्तयस्त्वेषां विज्ञेयस्तु तपोमतिः एते सप्तर्षयः सिद्धा अन्ये सार्वाणकेऽन्तरे | देववानुपदेव देवश्रेष्ठो विदूरयः मित्रवान्मित्रबिन्दुश्च मित्रसेनो ह्यमित्रहा | मित्रबाहुः सुतचच द्वादशैते मनोः सुताः ॥६४ ॥९६ ॥९७ ॥६८ IIEE ॥८८ ॥८६ कहे जाते हैं | ये सब देवगण ब्रह्मा के मानस पुत्र है, इन एक-एक गणों में दस दस देवता रहते हैं। उनमें अरुन्तिज, हवि, विद्वान् पर्वतानुचर, अप, अशु, मनोजव, ऊर्जा, स्वाहा, स्वधा और तारा – ये दस हरित गण के अन्तर्गत कहे जाते हैं । तप, जानि, भृति, वाचा, वन्धु, रज, राज, स्वर्णपाद, व्युष्टि और विधि - ये दस रोहित मण में हैं |८७-८६ | तैंतीस की संख्या में उपित वादि जो देवगण कहे जाते है, उन्हें ही सुमना नामक देवगणों के अन्तर्गत जानिये, सुकर्मा नामक गण का विवरण सुनिये | सुपर्वा, वृषभ, पृष्ठ, कपि, घुम्न विपश्चित, विक्रम, क्रम, निभृत, और क्रान्त - ये दस सुकर्मा देवगण के अधीन हैं। इनके सुतों को सुनिये ।९०-९३। ( सुपार नामक गण को सुनिये ) वर्पोदित (वर्षोदित ) जिष्ठ, वर्चस्वी, द्युतिमान्, हवि, शुभ, हविष्कृत प्राप्ति, व्यापृथ और दशम ये सुपारा नामक गण में रहने वाले देवताओं के नाम कहे गये है | इन देव ताओं के इन्द्र महान् यशस्वी ऋतधामा होंगे। वसिष्ठ पुत्र कृति, अत्रिनन्दन सुतपा, अङ्गिरागोत्रीय तपोमूर्ति कश्यपात्मज तपस्वी, पुलस्त्यगोत्रोद्भव तपोऽशयान, पुलह, कुलोत्पन्न तपोरति और भृगुनन्दन तपोमति – ये सात ऋषि उक्त मन्वन्तर के जानने चाहिये |९४-९७१३। इस सार्वणिक मन्वन्तर में देववान्, उपदेव, देवश्रेष्ठ, विदूरथ, मित्रवान्, मित्रविन्दु, मित्रसेन, अमित्रहा, और सुवर्चा- ये बारह ( ? ) मनु के पुत्र होंगे। तेरहवें रोच्य नामक मन्वन्तर में देवताओं के तीन ही गणो के होने की बात स्वयम्भू ब्रह्माजी ने वतलाई है। वे सब परम महात्मा