पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३९

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वायुपुराणम् ॥१२० ॥१२१ परास्परहृताश्वासा निराकन्दाः सुदुःखिताः । पुराणि हित्वा ग्रामांश्च तुल्यास्ता निष्परिग्रहाः ॥११६ प्रनष्टश्रुतिधर्माश्च नष्टधर्माश्रमास्तथा । ह्रस्वा अल्पायुषश्चैव भविष्यन्ति वनौकसः सरित्पर्वतसेविन्यः पत्रमूलफलाशनाः । चीरपत्राजिनधराः संकरं वै रमास्थिताः अल्पायुषो नष्टवार्ता बह्वाबाधाः सुदुःखिताः । एवं कष्टमनुप्राप्ताः कलिसंध्यांशके तदा प्रजाः क्षयं प्रयास्यन्ति सार्धं कलियुगेन तु । क्षोणे कलियुगे तस्मिन्प्रवृत्ते च कृते पुनः प्रपत्स्यन्ते यथान्यायं स्वभावादेवन नान्यथा । इत्येतत्कीर्तितं सर्वं देवासुरविचेष्टितम् यदुवंशप्रसङ्गेन महद्वो वैष्णवं यशः | तुर्वसोस्तु प्रवक्ष्यामि पूरोर्ब्रह्योरनोस्तथा ॥१२२ ॥१२३ ॥ १२४ ॥१२५ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते विष्णु माहात्म्यकथनं नामाष्टनवतितमोऽध्यायः ॥१८॥ ६१५ काट डालेंगे, परस्पर विश्वास कोई नहीं करेगा, उनके सारे उत्साह नष्ट हो जायेंगे | इस प्रकार परम दुःखित होकर वे अपने पुरों एवं ग्रामों को छोड़कर साधनविहीन अवस्था में नदियों एवं पर्वतों को भाग जायेंगे, वैदिक धर्म का उनमें सर्वथा विलोप हो जायगा, वर्णाश्रम घर्म नष्ट हो जायगा । आकार में छोटे छोटे होने लगेंगे, अल्प आयु हो जायगी, वन में निवास करने लगेगे ।११७-१२०। वहीं पर पत्र, मूल, फल खाकर जीवन यापन करेंगे । चीर, पत्र एवं मृगचर्म धारण करनेवाली वे प्रजाएँ घोर संकरवर्ण की हो जायँगी । अल्प आयु वाली उन प्रजाओं को जीविका आदि के साधन भी सव नष्ट हो जायेंगे | अनेक प्रकार की बाधाओं में पिस कर वे परम (घोर ) कष्ट सहन करेंगी। कलियुग के उस सन्ध्यांश में प्रजाओं को इस प्रकार के विविध कष्ट सहन करने पड़ेंगे। कलियुग के साथ उसकी प्रजाएँ नष्ट हो जायँगी, इस प्रकार उस कलियुग के व्यतीत हो जाने पर जब पुनः सतयुग का प्रारम्भ होगा, उस समय सारी वस्तुएँ फिर स्वाभाविक ढंग से अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त होंगी, किसी अन्य उपाय से नहीं । देवताओं और असुरों के संघर्ष का में यह विवरण बतला चुका, यदु के वंश के प्रसंग में भगवान् विष्णु के महान् यश का भी वर्णन कर दिया गया, अब आगे 'तुवँसु' पूरु और द्रह्म के वश का वर्णन कर रहा हूँ | १२१-१२५॥ ु श्री वायुमहापुराण मे विष्णुमाहात्म्य कथन नामक अट्ठानवेवां अध्याय समाप्त ॥१८॥