पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९१९

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८६५ वायुपुराणम् अभिजघ्नुः प्रसह्यैतानविचार्य बलाबलम् । तांस्त्रस्तान्वध्यमानांश्च देवेंदृष्ट्वाऽसुरांस्तदा देवी क्रुद्धाब्रवीदेनाननिद्रत्वं करोम्यहम् | संस्तभ्य शीघ्र संरम्भादिन्द्रं साइभ्यचरत्ततः ततः संस्तंभितं दृष्ट्वा शक्क्रं देवास्तु यूपवत् । व्यद्रवन्त ततो भीता दृष्ट्वा शक्रं वशीकृतम् गतेषु सुरसंघेषु विष्णुरिन्द्रमभाषत । मां त्वं प्रविश भद्रं ते नेष्यामि त्वां सुरेश्वर एवमुक्तस्ततो विष्णुं प्रविवेश पुरंदरः | विष्णुना रक्षितं दृष्ट्वा देवी क्रुद्धा वचोऽवदत् एषा त्वां विष्णुना सार्धं दहामि मघवानिव ( ? ) | मिषतां सर्वभूतानां दृश्यतां मे तपोवलम् ॥१३५ तथाऽभिभूतौ तौ देवाविन्द्राविष्णू जजल्पतुः । कथं मुच्येव सहितौ विष्णुरिन्द्रमभाषत इन्द्रोऽब्रवीज्जहीह्येनां यावन्नौ न दहेद्विभो । विशेषेणाभिभूतोऽहमतस्त्वं जहि मा घिरम् ततः समीक्ष्य तां विष्णुः स्त्रीवधं कर्तुमास्थितः । अभिध्याय ततश्चक्रमापन्नः सत्वरं प्रभुः ॥१३४ ॥१३६ ॥१३७ ॥१३८ ।।१३० ॥१३१ ॥१३२ ॥१३३ यहाँ पर भय करने की आवश्यकता नहीं है। वहाँ पर भय से रहित उन असुरों को देखकर देवताओं ने पराक्रम दिखलाकर बल अवल का कुछ भी विचार न करके उनका खूब संहार किया। देवताओं द्वारा मारे जाते हुए उन असुरों को देखकर देवी शुक्राचार्य की माता परम क्रुद्ध हुईं और देवताओं से बोली कि मैं तुम सब को इन्द्र से विहीन कर रही हूँ, इस प्रकार कहकर बड़े क्रोध से देवी ने इन्द्र को स्तम्भित कर दिया और स्वयं इधर उधर घूमने लगी । इन्द्र को यज्ञ के खम्भे की तरह स्तम्भित दशा में खड़ा देखकर और उन्हें परवश जानकर देवगण परम भयभीत हुए और भागने लगे। देवताओं के भाग जाने पर विष्णु ने इन्द्र से कहा 'सुरेश्वर ! तुम मेरे शरीर में प्रविष्ट हो जाओ, मैं तुझे यहाँ से अन्यत्र ले चलूँ ।१२८- १३३|' विष्णु के ऐसा कहने पर इन्द्र ने उनके शरीर में प्रवेश कर लिया। इन्द्र को विष्णु द्वारा इस प्रकार सुरक्षित देखकर देवी पुनः परम कुपित हुई और बोली, "मघवन् ! मैं अब तुमको यही पर सभी लोगो को देखते- देखते विष्णु के साथ जला रही हूँ, मेरे तपोबल को देखो ।' इस प्रकार शुक्राचार्य को माता द्वारा पराजित होकर उन दोनों देवताओं ने आपस में सम्मति की, विष्णु ने इन्द्र से कहा कि अब हम दोनो किस प्रकार बच सकते हैं । इन्द्र ने कहा, 'प्रभो ! जब तक यह हम दोनों को जलाने जा रही है तब तक इसी का काम तमाम कर दीजिये । मैं तो इस समय बहुत ही असमर्थ और पराजित हो गया हूँ, अतः तुम्हीं इसको मारो, तनिक भी देर न करो |१३४ - १३७३ | विष्णु उस देवी को इस प्रकार जलाने के लिए उद्यत देखकर स्त्री - वध करने के लिए उद्यत हुए । प्रभु ने इस आपत्तिपूर्ण दशा में अपने सुदर्शनचक्र का ध्यान किया, जिससे असुरो का संहारक, परम शीघ्रता से लक्ष्य को नष्ट करने वाला वह चक्र इन्द्र और विष्णु को जलाने में शीघ्रता करने वाली शुक्राचार्य को माता के सम्मुख उपस्थित हो गया । भगवान् विष्णु