पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८८०

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षण्णवतितमोऽध्यायः चिन्तयाऽभिपरीताङ्गी जगामाथ विनिश्चयम् | नाधिगच्छामि तां नारों यस्यामेवंविधः सुतः भवेत्सर्वगुणोपेतो राज्ञो देववृधस्य हि । तस्मादस्य स्वयं चाहं भवाम्यद्य सहव्रता ॥ जज्ञे तस्याः स्वयं हस्तो भावस्तस्य यथेरितः अथ भूत्वा कुमारी तु सावित्री परमं वचः । चिन्तयामास राजानं तामियेष स पार्थिवः तस्यामाधत्त गर्भ स तेजस्विनसुदारधीः । अथ सा नवमे मासि सुषुवे सरितां वरा पुत्रं सर्वगुणोपेतं यथा वेवावृधेप्सितः । तत्र वंशे पुराणज्ञा गाथां गायन्ति वै द्विजाः गुणान्देवावृधस्यापि कीर्तयन्तो महात्मनः । यथैव शृणुते वरात्संपश्यति तथाऽन्तिकात् बभ्रुः श्रेष्ठो मनुष्याणां देवैर्देवावृधः समः | पुरुषाः पञ्चषष्टिश्च सहस्राणि च सप्ततिः ॥ येऽमृतत्वमनुप्राप्ता बभ्रुर्देवावृधादपि यज्वा दानपतिर्वीरो ब्रह्मण्यः सत्यवाम्बुधः | कीर्तिमांश्च महाभागः सात्वतानां महारथः तस्यान्ववाये सुमहाभोजयेमातिकाबलाः । गान्धारी चैव माद्री च वृष्णेर्भायें बभूवतुः गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम् | माद्री युधाजितं पुत्रं सा तु वै देवमीदुषम् ८५६ HIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ आतुर होकर यह विचार किया कि 'मेरी जानकारी में ऐसी कोई स्त्री नहीं है, जिसमें राजा देवावृध के संकल्प के अनुसार सर्वगुणसम्पन्न पुत्र उत्पन्न हो, अतः अब मैं स्वयं ही इसकी सहघर्मिणी बन रही हूँ । राजा ने जिस प्रकार की भावना की थी उसी के अनुसार नदी से स्वमेव उसके हाथों का प्रार्दुभाव हुआ 1८-१०। तदनन्तर सावित्री कुमार होकर उसने सुन्दर शब्दों में राजा के प्रति अपनी चिन्ता (अनुरक्ति) प्रकट की, राजा ने उसको इच्छा पूर्ति की । उदारचेता राजा देवावृध ने उस कुमारी में एक तेजस्वी पुत्र का गर्भाधान किया | सरिताओं में श्रेष्ठ पर्णाशा ने नवें महिने में जिस प्रकार के पुत्र की इच्छा राजा देवावृध को थी उसी प्रकार का सर्वगुण सम्पन्न पुत्र उत्पन्न किया। पुराणों की कथाओं के जाननेवाले विद्वान् ब्राह्मण लोग उस वंश के प्रसंग में महात्मा राजा देवावृध के गुणों ओर वंशों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वह राजा देवावृध दूर से जैसा सुना जाता था कि वैसा ही समीप में जाने पर प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता था । राजा देवावृध देवताओं के समान गुणशाली था । बभ्रु मानव समाज में सर्वश्रेष्ठ था। इस वंश के पैंसठ सहस्र सत्तर मनुष्यों ने अमृतत्व की प्राप्ति को । बभ्रु गुणों में देवावृध से भी बढ़ा चढ़ा था |११-१५ वह यज्ञ करनेवाला, दानियों का स्वामी, वीर, ब्राह्मणप्रतिपालक, बुद्धिमान् सत्यवादी, कीर्तिमान् महाभाग्यशाली एवं सात्वत के वंश में उत्पन्न होनेवालों में एकमात्र महारथी था । उसके वंश में महान् भोज (?) वंशीय एवं आर्तिकाबलों (?) को उत्पत्ति हुई थी । गान्धारी और माद्री - ये दो वृष्णि की स्त्रियाँ थीं। इनमें से