पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८७९

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[[८५८ वायुपुराणम् अथ षण्णवतितमोऽध्यायः विष्णुवंशवर्णनम् सूत उवाच सात्वती रूपसंपन्ना कौशल्या सुपुवे सुतान् । भजिनं भजमानं च दिव्यं देवावृधं नृपम् अन्धकं च महाभोजं वृष्णि च यदुनन्दनम् । तेषां हि सर्गाश्चत्वारः शृणुध्वं विस्तरेण वै भजमानस्य शृञ्जय्यां बाह्यश्नोपरि वाह्यकः | शूज्जयस्य सुते द्वे तु वाह्यकस्ते उदावहत् तस्य भार्ये भगिन्यौ ते प्रसुतेति सुतान्बहून् | निमिश्च पणवश्चैव वृष्णिः परपुरंजयः ये बाह्यकार्यशृञ्जय्यां भजमानाद्विजज्ञिरे । अयुतायुतसाहस्रशतजिदय वामकः बाह्यकार्याभगिन्यां ये भजमानाद्विजज्ञिरे । तेषां देवावृधो राजा चचार परमं तपः पुत्रः सर्वगुणोपेतो मम भूयादिति स्म ह | संयोज्याऽऽत्मानमेवं सा. सवर्णा जलमस्पृशत् सा चोपस्पर्शनात्तस्य चकार ऋषिमापगा। कल्याणं च नरपतेस्तस्य सा निम्नगोत्तमा ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ ।।५ ॥६ 111 ॥८ अध्याय ६६ विष्णु-वंश-वर्णन · सूत चोले- ऋषिवृन्द ! रूपवती सात्वत की स्त्री कोशल्या ने भजिन भजमान् राजा देवावृध अन्धक, महाभोज तथा यदुनन्दु वृष्णि प्रभृति पुत्रों को उत्पन्न किया। इन सबो मे चार वंशों का विवरण विस्तारपूर्वक सुनिये | भजमान के शृञ्जयी नामक पत्नी में धाल और उपरिवाहा नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए | शृञ्जय की दो पुत्रियाँ थी, जिन्हे वाह्यक ने पत्नी रूप में स्वीकार किया। उन दोनों बहिनो ने, वाह्यक की पत्नी होकर अनेक पुत्र उत्पन्न किए। जिनमें निमि, पणव एवं शत्रुओं के नगरों को जीतने वाले वृष्णि प्रमुख हुए - भजमान के पुत्र वाह्यक ने अपनी ज्येष्ठ रानी मे इन पुत्रों को उत्पन्न किया । इसी प्रकार कनिष्ठ रानी मे अयुतायुत जित् सहस्रजित शतजित और वामक नामक पुत्र उत्पन्न हुए। इन सबों में राजा देवावृध ने परम तपस्या को ११-६। उन्होने यह संकल्प करके तपस्या की थी कि 'मुझे एक सर्वगुण सम्पन्न पुत्र प्राप्त हो ।' इस प्रकार संकल्प कर राजा ने तपस्या करते समय योगवल से पर्णाशा नामक नदी के जल का स्पर्श किया। स्पर्श करते हो नदी ने राजा को कल्याण चिरता की नदियों में उत्तम पर्णाशा ने चिन्ता