पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८७७

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वायुपुराणम् ॥३१ ॥३३ रुवमेषुरभवद्राजा पृथुरुक्मस्तदाश्रयः । तेभ्यः प्रव्रजितो राज्याज्ज्यामेघोऽभवदाश्रमे प्रशान्तस्तु वने घोरे ब्राह्मणेनावबोधितः । जगाम धनुरादाय देशमध्यं रथो ध्वजी नर्मदानूप एकाकी मेकलावृत्तिका अपि । ऋक्षवन्तं गिरिं गत्वा शुक्तिमत्या मथाविशत् ज्यामघस्याभवद्भार्या शैव्या बलवती भृशम् । अयुत्रोऽपि स वै राजा भार्यामन्यां न विन्दति ॥३२ तस्याऽऽसोद्विजयो युद्धे ततः कन्यामवाप सः | भार्यामुवाच राजा स स्तुषेति तु नरेश्वरः एवमुक्ताऽब्रवीदेनं कस्येयं ते स्नुषेति सा | यत्ते जनिष्यते पुत्रस्तस्य भार्या भविष्यति तस्य सा तपसोग्रेण शैव्या वैशं प्रसूयत । पुत्रं विदर्भ सुभगा शैव्या परिणता सती राजपुत्रौ तु विद्वांसौ स्नुषायां क्रथकौशिकौ | पुत्रौ विदर्भोऽजनयच्छूरौ रणविशारदौ लोमपादं तृतीयं तु पश्चाज्जज्ञे सुधार्मिकम् | लोमपादात्मजो वस्तुराहृतिस्तस्य चाऽऽत्मजः कौशिकस्य चिदिः पुत्रस्तस्माच्चैद्या नृपाः स्मृताः । क्रथो विदर्भपुत्रस्तु कुन्तिस्तस्याऽऽत्मजोऽभवत् ॥३८ कुन्तेधृ ष्टसुतो जज्ञे पुरो धृष्टः प्रतापवान् | धृष्टस्य पुत्रो धर्मात्मा निर्वृतिः परवीरहा ॥३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३ ८५६ ॥२ ॥३० में स्थापित किया |२३-२८० रुमेपु अपने पिता के राज्य का अधिकारी हुआ, पृथुरुक्म उसके अधीन था । उन सभी भाइयों ने मिलाकर ज्यामघ को निर्वासित कर दिया, जिससे उसने वन में अपना आश्रम बनाया । घोर वन्य प्रान्त में मुनिवृत्ति धारण करनेवाले ज्यामघ को एक ब्राह्मण ने प्रेरणा दो, जिससे प्रभावित होकर वह रथ पर चढ़ धनुप धारण कर मध्य देशं प्रस्थित हुआ | वहाँ नर्मदा के तटवर्ती प्रान्त में अकेले घूमते हुए, वह मेकल पर्वत के शिखरों से ऋक्षवान् नामक पर्वत पर पहुँचा और वहाँ से शुक्तिमतो में प्रविष्ट हुआ । ज्यामघ की पत्नी शैव्या परम शक्तिमतो और साहसो थो । उससे कोई पुत्र यद्यपि नहीं था फिर भी राजा होकर उसने दूसरी स्त्री से व्याह नहीं किया था ।२९-३२। एक युद्ध में राजा ज्यामघ की विजय हुई, जिसमें उसने एक कन्या प्राप्त की। नरपति ने उस कन्या को लाकर अपनी स्त्रों से यह कहा कि 'यह तुम्हारी पुत्र वधू है ।' राजा के ऐसा कहने पर शैव्या ने कहा 'यह किसकी पुत्रवधू होगी।' राजा ने कहा 'तुम्हे जो पुत्र उत्पन्न होगा यह कन्या उसीकी स्त्री होगी ।' राजा के इस वचन से शैव्या ने कठोर तपस्या की, जिससे उसे एक पुत्र हुआ । सुन्दरी, साध्वी शैव्या ने वृद्धावस्था में इस प्रकार विदर्भ नामक पुत्र को उत्पन्न किया था । उसको पुत्रवधू में विदर्भ से ऋथ और कौशिक नामक दो राजपुत्र उत्पन्न हुए, जो परम विद्वान् सुर-वीर और रणनिपुण थे |३३-३६ | उन दोनों पुत्रों के पीछे राजा विदर्भ ने एक सोसरे परम धार्मिक लोमपाद नामक पुत्रं को उत्पन्न किया । लोमपाद के पुत्र राजा वस्तु हुए, उनके पुत्र माहति हुए | कौशिक के पुत्र चिदि हुए, जिस चिदि से उत्पन्न होने वाले राजा लोग चैद्य नाम से विख्यात हुए । विदभँराज के पुत्र जो क्रथ थे, उनके आत्मज कुन्ति हुए । कुन्ति के पुत्र धृष्टसुत हुए, जो परम प्रतापशाली राजा थे । धृष्ट के