पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८७६

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पञ्चनवतितमोऽध्यायः एवं चित्ररथो वीरो यज्ञान्विपुलदक्षिणान् । शशबिन्दुः परं वृत्तो राजर्षीणामनुष्ठितः चक्रवर्तो महासत्त्वो महावीर्यो बहुप्रजः । तत्रानुवंशश्लोकोऽयं यस्मिन्गीतः पुराविदः शशबिन्दोऽस्तु पुत्राणां शतानामभवच्छतम् । धीमतामनुरूपाणां भूरिद्रविणतेजसाम् तेषां षट् च प्रधानास्तु पृथुसाह्वा महाबलाः । पृथुनवाः पृथुयशाः पृथुधर्मा पृथुंजयः पृथुकोतिः पृथुदाता राजानः शाशबिन्दवः | शंसन्ति च पुराणानि पार्थश्रवसमन्तरम् ॥ अन्तरः स पुरा यस्तु यज्ञस्य तनयोऽभवत् उशना सेतु धर्मात्मा अदाप्य पृथिवीमिमाम् | आजहाराश्वमेधानां शतमुत्तमधार्मिकः मरुत्तस्तस्य तनयो राजर्षीणामतुष्ठितः । वीरः कम्वलबहिस्तु मरुत्तत्तनयः स्मृतः पुत्रस्तु रुक्मकवचो विद्वान्कम्बलबहिषः । निहत्य रुदमकवचः पुरा कवचिनो रणे धन्विनो निशितैर्बाणैरवाप श्रियमुत्तमाम् । ब्राह्मणेभ्यो ददौ वित्तमश्वमेधे महायशाः राज्ञस्तु रुक्मकचचादपरावृत्य वीरहा: । जज्ञिरे पञ्च पुत्रास्तु महासत्वा महाबलाः रुक्मेषु पृथुरुक्मश्च ज्यामधः परिघो हरिः । परिघं च हरिं चैव विदेहेऽस्थापयत्पिता ८५५ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ||२४ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ चित्ररथ ने भी इसी प्रकार विपुलदक्षिणावाले यशो का अनुष्ठान किया था । तदनन्तर राजर्षियो द्वारा सम्मानित • शशविन्दु राज्याधिकारी हुआ |१४-१८ | वह महावलवान्, महान् पराक्रमी, अनेक पुत्रोंवाला, तथा चक्रवर्ती शासक था । पुरानी कथाओ के जाननेवाले उसके विषय में श्लोक गाते है, जिसका आशय निम्न प्रकार है। राजा शशविन्दु के एक सौ विपुल अर्थवल सम्पन्न बुद्धिमान् एवं तेजस्वो पुत्र थे, जिनमे छः सबसे बड़े प्रमुख थे, जो सब पृथुगण के नाम से विख्यात थे, वे छ: पुत्र महान् बलशाली थे । उनके नाम थे, पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुधर्मा, पृथुञ्जय, पृथुकीर्ति और पृथुदाता | ये सब के सब राजा थे और शशविन्दु के पुत्रों के नाम से विख्यात थे। सभी पुराण पृश्रुश्रवा के पुत्र अन्तर को बड़ी प्रसंसा करते हैं, यही अन्तर प्राचीन काल में यज्ञ का पुत्र था |१६ - २२1 उसी धर्मात्मा ने उशना नाम से इस पृथ्वी को प्राप्त किया | परम धार्मिक विचारों वाले उशना ने एक सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया। उसका पुत्र मरुत्त हुआ जिसे राजविंगण परम सम्मान देते हैं, मरुत्त का पुत्र वीरकम्बलवह कहा जाता है, कम्बलवर्हि का पुत्र परम विद्वान राजा रुक्मकवच हुआ। प्राचीनकाल में इस राजा रुक्मकवच ने बहुतेरे धनुप, बाण, कवच धारण करनेवाले योद्धाओं को युद्ध क्षेत्र में अपने तीक्ष्णवाणों से मारकर उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति की थी । और अश्वमेध यज्ञ में ब्राह्मणों को भूरि दक्षिणा दान कर महान् यश प्राप्त किया था। उस राजा रुक्मकवच से शत्रुओं के वीरों को नष्ट करनेवाले महान् वलवान्, महान् पराक्रमी पाँच वीर पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम थे, रुक्मेषु, पृथुरुक्म, ज्यामध, परिधि और हरि | पिता ने परिधि और हरि नामक पुत्रों को विदेह देश