पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८७३

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८५२ वायुपुराणम् न तस्य वित्तनाशश्च नष्टं प्रतिलभेत सः । कार्तवीर्यस्य यो जन्म कथयेदिह धीमतः वित्तवान्भवतेऽत्रैव धर्मश्चास्य विवर्धते । यथा त्वष्टा यथा दाता तथा स्वर्गे महोयते इति महापुराणे वायुप्रोक्ते कार्तवीर्यार्जुनोत्पत्ति विवरणं नाम चतुर्नवतितमोऽध्यायः ॥३४॥ थपञ्चनवतितमोऽध्यायः ज्यामघवृत्तान्तकथनम् ऋषय ऊचुः किमर्थे भुवनं दग्धमापवस्य महात्मनः । कार्तवीर्येण विक्रम्य तन्नः प्रब्रूहि पृच्छताम् रक्षिता स तु राजषि: प्रजानामिति नः श्रुतम् । कथं स रक्षिता मुत्वाऽनाशयत्तत्तपोवनम् 1 ॥५५ ॥५६ ॥१ ॥२ प्रजाओं का पालम करता था। उस परम बुद्धिमान् महाराज कार्तवीर्यार्जुन का जन्म वृत्तान्त इस लोक में जो कहता है, उसकी सम्पत्ति नष्ट नहीं होती, यदि नष्ट हो गई हो तो पुनः प्राप्त होती है, इस लोक में वह परम धनशाली होता है, धर्म की वृद्धि होती है, जिस प्रकार शुभ कर्म परायण एवं दानशील लोग स्वर्ग में पूजित होते हैं, उसी प्रकार वह भी स्वर्ग में पूजित होता है |५४-५६। श्रीवायुमहापुराण में कार्तवीर्यार्जुनोत्पत्ति विवरण नामक चौरानवेवाँ अध्याय समाप्त ||१४|| अध्याय ६५ ज्यामध का वृत्तान्त विवरण ऋषि वृन्द चोले- सूत जो ! कार्तवीर्य ने अपना पराक्रम दिखाते हुए महात्मा आपण के आश्रम को क्यों जला दिया ? ऐसा सुना जाता है कि वह राजपि कार्तवीर्यार्जुन अपनी प्रजाओ का पालक था, सो रक्षक होकर उसने तपोवन को मला क्यों जलाया, इसे हम लोग आपसे पूछ रहे हैं, कृपया वतलाइये ।१ - २१