पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८५७

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८३६ वायुपुराणम् ततः स दुःखसंतप्तो नालभत्संविदं क्वचित् । शशाप हेतुकमृषि शरण्यं व्यथितस्तदा इन्द्रोतो नाम विख्यातो योऽसौ सुनिरुदारधीः । याजयामास चेन्द्रोतः शौनको जनमेजयम् ॥ अश्वमेधेन राजानं पावनार्थं द्विजोत्तमः स लोहगन्धो व्यनशत्तस्याऽऽवसथमेत्य ह । स च दिव्यो रथस्तस्माद्वसोश्चेदिपतेस्तथा ततः शक्रेण तुण्टेन लेभे तस्माद्बृहद्रथः । ततो हत्वा जरासंधं भीमस्तं रथमुत्तमम् ॥ प्रददौ वासुदेवाय प्रोत्या कौरवनन्दनः ॥२४ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ स जरां प्राप्य राजर्षिर्ययातिर्नहुषात्मजः । पुत्रं ज्येष्ठं वरिष्ठं च यदुमित्यब्रवीद्वचः जरावली च मां तात पलितानि च पर्यगुः | काव्यस्योशनसः शापान च तृप्तोऽस्मि यौवने त्वं यदो प्रतिपद्यस्व पाप्यानं जरया सह । जरां से प्रतिगृह्णीष्व तं यदुः प्रत्युवाच ह अनिर्दिष्टा मया भिक्षा ब्राह्मणस्य प्रतिश्रुता | सा च व्यायामसाध्या वै न ग्रहीष्यामि ते जराम् ॥३१ ॥३० दिया था। इस प्रकार अत्यन्त दुःखित हो जाने पर भी उनको जब कहीं शान्ति का स्थान नहीं मिल सका तो अनन्योपाय एवं परम दुःखी होकर शाप देनेवाले ऋषि की शरण में गये ।२३-२४१ पर उदार बुद्धिवाले शुनक गोत्रोत्पन्न इन्द्रोत नामक परम विख्यात मनि ने राजा जनमेजय को इस घोर पाप से छुड़ाने के लिये यज्ञ कराया । इस प्रकार विजश्रेष्ठ इन्द्रोत ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान कराया, तव उम्हीं के निवाम में राजा का लोहगन्धन्त्र दूर हुआ । वह दिव्य रथ उसके अधिकार से (?) चेदि देशाधिपति राजा वसु के अधीन हुआ । वसुसे इन्द्र ने प्राप्त किया, इन्द्र ने सन्तुष्ट होकर राजा बृहद्रथ को दिया । वृहद्रथ को मार कर उसे जरासंघ ने छीना, इसके उपरान्त जरासंच से उस दिव्य रथ को भीम ने प्राप्त किया। कोरवनन्दन भीम ने प्रसन्नता पूर्वक उस रथ को वासुदेव को समर्पित किया १२५-२७१ नहपपुत्र राजप ययाति जब बहुत वृद्ध हो गये तब अपने सब से बड़े और योग्य पुत्र यदु से यह बात चोले, पुत्र ! यदु ! शुक्राचार्य के शाप के कारण वृद्धता, चमड़े की सिकुड़न और पलितादि ने मुझे चारों ओर से घेर लिया, किन्तु मै अभी तक यौवनावस्था से सन्तुष्ट नहीं हो सका । तुम मेरी इस वृद्धता और पाप को ग्रहण कर लो ।' ययाति की ऐसी बातें सुनकर यदु ने उत्तर दिया तात ! मैंने अनन्तकाल तक वाह्मण को शिक्षादान करने की प्रतिज्ञा ठान ली है, वह भिक्षा विशेष परिश्रम से साध्य होगी अतः तुम्हारी

  1. अत्रत्यग्रन्थस्य न पूर्वापरसंगतिः ।

१. यहाँ पर ग्रन्थ का मूल पाठ भ्रष्ट मालूम पड़ता है। पूर्व कथा से पर कथा की कोई संगति नही मिलती । जनमेजय भीम के वाद हुये थे। फिर जनमेजय के बाद भीम को रथ की प्राप्ति किस प्रकार सम्भव हुई ? अनुवादक ।