पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३७

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८१६ वायुपुराणम् अजकस्य तु दायादो बलाकाश्वो महायशाः । बभूवुश्च मयः शोलः कुशस्तस्याऽऽत्मजः स्मृतः कुशपुत्रा बभूवुश्च चत्वारो वेदवर्चसः | कुशाश्वः कुशनाभश्च अमूर्तारयशो वसुः कुशस्तम्बस्तपस्तेपे पुत्रार्थो राजसत्तमः | पूर्ण वर्षसहस्रे वै शतक्रतुमपश्यत सुदुर्गं तापसं दृष्ट्वा सहस्राक्षः पुरंदरः । समर्थः पुत्रजनने स्वयमेवास्य शाश्वतः पुत्रत्वं कल्पयामास स्वयमेव पुरंदरः । गाधिर्नामाभवत्पुत्रः कौशिकः पाकशासनः पौरुकुत्साऽभवद्भार्या गाधिस्तस्यामजायत । पूर्वकन्यां महाभागां नाम्ना सत्यवतीं शुभाम् ॥ तां गाधिः पुत्रा काव्याय रुचीकय ददौ प्रभुः तस्यां पुत्रस्तु वै भर्ता भार्गवो भृगुनन्दनः । पुत्रार्थे साधयामास चरुं गाधेस्तथैव च तथा चाऽऽहूय निधृतिमृचीको भार्गवस्तदा । उपयोज्यश्चरुरयं त्वया मात्रा च ते शुभे तस्यां जनिष्यते पुत्रो दीप्तिमान्क्षत्रियर्षभः | अजेयः क्षत्रियैर्युद्धे क्षत्रियर्षभसूदनः तवापि पुत्रं कल्याणि धृतिमन्तं तपोधनम् | शमात्मकं द्विजश्रेष्ठं चरुरेष विधास्यति ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ।।६७ ॥६८ ॥६६ ।।७० ॥७१ अजक का उत्तराधिकारी राजा बलाकाश्व परम यशस्वी राजा था । उसके गय, शोल ओर कुण नामक पुत्र कहे जाते है । कुश के चार पुत्र हुए, जो वेद ज्ञान मे यश प्राप्त करनेवाले थे, उनके नाम थे कुशाश्व, कुशनाभ, अमूर्तरयश और वसु । राजाओं मे श्रेष्ठ कुशस्तम्व ने पुत्र प्राप्ति के लिये तपस्या की, एक सहस्र वर्षं बीतने पर उसने इन्द्र का दर्शन किया ||६२-६४ | सहस्रनेवाले पुरन्दर ने परम कठोर तप में निरत राजा कुशस्तम्ब को देखकर स्वयमेव उनके पुत्र रूप में होने का निश्चय किया । इस प्रकार पुरन्दर ने स्वयमेव पुत्रत्व का निश्चय किया | पाकशासन इन्द्र राजा कुशस्तम्ब के पुत्र के रूप में गाधि नाम से ख्यात हुए, उनका एक दूसरा कौशिक नाम भी हुआ । राजा कुशस्तम्व की पत्नी पोरुकुत्सा थो, जिसमें ध उत्पत्ति हुई । महाभाग्यशालिनी, कल्याणदायिनी वड़ी कन्या सत्यवतो को ऐश्वर्यशाली गाधि ने भृगु गोत्र मे उत्पन्न होने वाले रुचीक को समर्पित किया । । ६५-६७१ उस सत्यवती में भृगुनन्दन, भृगुवंश शिरोमणि जमदग्नि उत्पन्न हुए । भृगुवंशोत्पन्न ऋषिवर्य रुचोक ने अपने और गाधि के पुत्र के लिए एक चरु बनाया | अपनी पत्नी णिघृति (सत्यवती) को बुलाकर उन्होंने कहा, 'कल्याणी ! यह चरु तुम और तुम्हारी माता इस क्रम से खाना । इसके प्रभाव से तुम्हारी माता मे क्षत्रिय जाति मे श्रेष्ठ, परमकान्तिमान् एक पुत्र उत्पन्न होगा, वह युद्धभमि में अन्यान्य क्षत्रियों द्वारा पराजित नही होगा, बड़े बड़े योद्धा क्षत्रियों का वह विनाश करनेवाला होगा । है कल्याणि ! तुम्हारा पुत्र भी परम शान्त, तपोमय, धैर्यशाली एवं बुद्धिमान् होगा | यह चरु उसे ब्राह्मण जाति में सर्वश्रेष्ठ बनायेगा, अर्थात् इसके प्रभाव से वह समस्त ब्राह्मण जाति में श्रेष्ठ गुणोंवाला होगा ॥६८-७१।'