पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८११

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७६० वायुपुराणम् + विन्ध्यपार्श्वे महापुण्या निम्नगा गिरिकानने । तस्य स्नामेन संभूता कर्मनाशा शुभा नदी || सशरीरं तदा तं वै दिवमारोपयत्प्रभुः मिषतस्तु वसिष्ठस्य तदद्भुत मिवाभवत् । अत्राप्युदाहरन्तीमौ श्लोको पौराणिका जनाः विश्वामित्रप्रसादेन त्रिशङ्कुदिवि राजते । देवैः सार्धं महातेजाऽनुग्रहात्तस्य धमितः शनैर्यात्यबला रम्या हेमन्ते चन्द्रमण्डिता | अलंकृता त्रिभिर्भाव स्त्रिशङ्कुग्रह भूषिता तस्य सत्यरता नाम भार्या केकयवंशजा | कुमारं जनयामास हरिश्चन्द्रमकल्मषम् स तु राजा हरिश्चन्द्रस्त्रैशव इति श्रुतः । आहर्ता राजसूयस्य सम्राडिति परिश्रुतः हरिश्चन्द्रस्य तु सुतो रोहितो नाम वीर्यवान् । हरितो रोहितस्याथ चञ्चुरीत उच्यते विजयश्च सुदेवश्च चञ्चुपुत्रौ वभूवतुः | जेता सर्वस्य क्षत्रस्य विजयस्तेन स स्मृतः रुरुकस्तनयस्तत्र राजा धर्मार्थकोविदः । रुरुकाद्धृतकः पुत्रस्तस्माद्बाहुश्च जज्ञिवान् ॥११३ ॥११४ ॥११५ ॥११६ ॥११७ ॥११८ ॥११६ ॥१२० ॥१२१ गये ।१०६-११२। यज्ञावसान में उस त्रिशंकु स्नान करने से कर्मनाशा नामक नदी अवतीर्ण हुई जो विन्ध्याचल पर्वत के समीप जंगलों और पहाडियों में से बहती है। वह कर्मनाशा नदी महापुण्य- दायिनी तथा मंगलकारी है। इस प्रकार महान ऐश्वर्यशाली विश्वामित्र ने सत्यव्रत को स्वर्ग में प्रतिष्ठित किया । महर्षि वसिष्ठ उनके इस अद्भुत कार्य को देखकर रह गये । पौराणिक लोग इस विषय में इन दो श्लोकों को उपस्थित करते । जिनका आशय इस प्रकार है |११३- ११४। 'महामुनि विश्वामित्र की कृपा से त्रिशंकु स्वर्ग में विराजमान है, उस परम बुद्धिमान को कृपा से वह तेजस्वी होकर देवताओं के साथ शोभा पता है, त्रिशंकु रूप ग्रह के आकर्षण से विभुषित होकर, तीन प्रकार के भावो से अलंकृत हेमन्त में चन्द्रमा समान सुन्दरी एक मनोहर रमणी उसके पास धीरे धीरे जाती है ।' उस राजा त्रिशंकु की पत्नी केकयवंश में उत्पन्न सत्यव्रता नाम की थी ।११५ ११६३। उसने हरिश्चन्द्र नामक परम धार्मिक पुत्र को उत्पन्न किया, वह राजा हरिश्चन्द्र त्रिशंकु के पुत्र रूप में परम विख्यात था । उमने अपने समय मे राजसूय यज्ञ सम्पन्न किया था, समस्त पृथ्वी मण्डल का वह एकच्छत्र सम्राट था, ऐसा सुना जाता है | हरिश्चन्द्र का पुत्र परम वलवान् रोहित का पुत्र हरित हुआ, हरित का पुत्र चंचू नाम से प्रसिद्ध हुआ |११७-११६। उस चंचु के विजय और सुदेव नामक दो पुत्र हुए। विजय सभी क्षत्रियों का विजेता था, इसी कारण से उसका नाम भी विजय था । विजय का पुत्र हरुक हुआ, जो अपने समय का परम धर्मायवेत्ता राजा था । रुरुक का पुत्र हृतक हुआ, और उसका बाहु उत्पन्न हुआ । हैहय और तालजंघ के वंशों में उत्पन्न होने वालों ने परम व्यसनी राजा वाहु को परास्त कर दिया । + नास्त्ययं श्लोकः क. ग. घ. ङ. पुस्तकेषु ।