पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७७४

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चतुरशीतितमोऽध्यायः अथ चतुरशीतितमोऽध्यायः श्राद्भकल्पे वरुणवंशवर्णनम् ऋषयश्चैवमुक्तास्तु परं हर्षमुपागताः । परं शुश्रूषवो भूयः पप्रच्छुस्तदनन्तरम् ऋषय ऊचुः वंशानामानुपूर्व्येण राज्ञां चामिततेजसाम् । स्थिति चैषां प्रभावं च ब्रूहि नः परिपृच्छताम् एवमुक्तस्ततः सुतस्तथाऽसौ लोमहर्षणः । शुश्रूषामुत्तराख्याने ऋषीणां वाक्यकोविदः ॥ आख्यानकुशलो भूयः परं बाक्यमुवाच ह सूत उवाच ब्रुवतो मे निबोधस्व ऋषिराह यथा मम वंशानामानुपूर्व्येण राज्ञां चामिततेजसाम् । स्थिति चैव प्रभावं च ब्रुवतो मे निबोधत वरुणस्य पत्नी सामुद्री शुनादेवीत्युदाहृता | तस्याः पुत्रौ कलिवैद्यः सुता च सुरसुन्दरी ७५३ " ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ अध्याय ८४ श्राद्ध विधि के प्रसंग में वरुण के वंश का वर्णन सूत के ऐसा कहने परम ऋषिगण परम हर्षित हुए और पुन: जिज्ञासा भाव से उनसे पूछा ॥१॥ ऋषियों ने कहा- अमित तेजस्वी राजाओं के वंशों का क्रमपूर्वक वर्णन, उनको स्थिति एवं उनके प्रभाव को हम लोग सुनना चाहते हैं, बतलाइये । लोमहर्षण सुतजी, जो समस्त श्रोता ऋषियों के उत्तर देने में परम प्रवीण सुन्दर वाक्यों के बोलने में सुनिपुण, एवं प्राचीन आख्यानों के कुशल वक्ता थे, ऋषि के इस प्रकार पूछने पर बोले ।२-३। सूत ने कहा - ऋषि ने इस विषय में जो कुछ मुझसे बतलाया है उसे मैं बतला रहा हूँ, सुनिये | अमित तेजस्वी राजाओं के वंश उनकी स्थिति, एवं उनके प्रभाव का वर्णन मैं कर रहा हूँ, सुनिये । वरुण की पत्नी सामुद्री थीं जो शुना पुकारी जाती हैं, उनके कलि और वैद्य नामक दो पुत्र हुए और एक पुत्री सुर सुन्दरी नामक दो महाबलवान् पुत्र जय और विजय नामक हुए। वैद्य के फा०-६५