पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७७१

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७५० वायुपुराणम् तीर्थानां च फलं कृत्स्नं दानादीनां तथैव च । भोक्षोपायो ह्ययं श्रेष्ठः स्वर्गीगायो ह्ययं परः ॥ इह चापि परा तुष्टिस्तस्मात्कुर्वीत यत्नतः इस विधि यो हि पठेदतन्द्रितः समाहितः संसदि पर्वसंधिषु | अपत्यभाग्भवति परेण तेजता दिवौकसां रा व्रजते सलोकताम् येन प्रोक्तोस्त्वयं कल्पो नमस्तस्यै स्वयंभुवे | महायोगेश्वरेभ्यश्च सटा च प्रणतो ह्यहम् इत्येते पितरस्तात देवानामपि देवताः । सप्तस्वेतेषु ते नित्यं स्थानेषु पितरोऽध्यथाः प्रजापतिसुता होते सर्वे चैव महात्मनः | आद्यो गणरतु योगानां स नित्यो योगदर्धनः द्वितीयो देवतानां नु तृतीयो देवताऽऽरिणाम् । शेषास्तु वणिनां ज्ञेया इति सर्वे प्रकीर्तिताः देवास्त्वेतान्यजन्ते व सर्वेष्वेतेष्ववस्थिताः आश्रमास्तु यजन्त्येतांचत्वारस्तु यथाक्रमम् चर्णाश्चापि यजन्त्येतांश्चत्वारस्तु यथाविधि | तथा शंकरजाताश्च म्लेच्छाव यजन्ति वै पितॄश्च यो यजेद्भक्त्या पितरः पूजयन्ति तम् । पितरः पुष्टिकामस्य प्रजाकामस्य वा पुनः ॥ पुष्टि प्रजाश्च स्वर्ग च प्रयच्छन्ति पितामहाः ॥११३ ॥१०५ ॥१०६ ॥१०७ ॥१०८ ॥१०६ ॥११० ॥१११ ॥११२ लिये इससे घटकर सरल उपाय कोई दूसरा नहीं है | इस लोक में इसके द्वारा परम संतोष की प्राप्ति होती है अतः यत्नपूर्वक इसका वनुष्ठान करना चाहिये |१०४-१०५ आनग्य-रहित होकर पर्व-गन्धियों में जो व्यक्ति इस श्राद्ध विधि का पाठ सावधानी पूर्वक सभा आदि में करता है, वह परम तेजरवी मनुष्य संततिवान् होता है, और देवताओं के समान उसे पचिन लोक की प्राप्ति होती है |१०६ जिस अजन्मा भगवान् स्वयम्भू ने श्राद्ध की पुनीत विधि बतलाई है, उसे हम नमस्कार करते है |१०७॥ महान् योगेश्वरों के चरणो मे हम सर्वदा प्रणाम करते हैं | हे तात ! ये पितरगण देवताओं के भी देवता है, ये नावहीन पितरगण इन सात स्थानो मे नित्य निवास करते है । वे सव परम महात्मा तथा प्रजापति के पुत्र है, इनका सर्वप्रथम गण योगियो का है, अतः वे नित्य योगवर्धन के नाम से विख्यात हे ११०८१०९ द्वितीय गण देवताओ का, तृतीय देवताओं के शत्रुओं का शेष अन्य वर्णियों के है - इन सचो का वर्णन कर चुका | इन सब लोकों मे अवस्थित रहकर देवगण इन सवी की पूजा करते हैं | चारो आश्रम में निवास करने वाले क्रमपूर्वक इनकी पूजा करते है, चारो वर्ण के लोग भी इन सबों की विधिपूर्वक पूजा करते है, इसी प्रकार समस्त म्लेच्छ जाति वाले और सकरवर्ण भी उन सबो की पूजा करते हैं । जो भक्ति पूर्वक इन पितरों को पूजा करता है, उसकी पूजा वितरगण रवयं करते है, पुष्टि एवं पूजा की कामना करने वाले को ये पितामहादि वितरगण सर्व प्रकार से पुष्टि, प्रजाएँ और स्वर्ग प्रदान करते हैं । ११०-११३ । पुत्र के लिए पितरो कर कार्य