पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६८

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त्र्यशीतितमोऽध्यायः शुक्लपक्षस्य पूर्वाह्न श्राद्धं कुर्याद्विचक्षणः | कृष्णपक्षेऽपराह्न तु रौहिणं न विलङ्घयेत् एवमेते महात्मानो महायोगा महौजसः । सदा वै पितरः पूज्या द्रष्टारो देशकालयोः पितृभक्तिरतो नित्यं योगं प्राप्नोत्यनुत्तमम् | ध्यानेन मोक्षं गच्छन्ति हित्वा कर्म शुभाशुभम् यज्ञहेतोर्यदुद्भृत्य मोहयित्वा जगत्तदा । गुहायां निहतं योगं कश्यपेन महात्मना अमृतं गुह्यसुद्धृत्य योगं योगविदांवर | प्रोक्तं सनत्कुमारेण महान्तं धर्मशाश्वतम् देवानां परमं गुह्यमृषीणां च परायणम् | पितृभक्त्या प्रयत्नेन पितृभक्तश्च नित्यशः तं च योगं समासेन पितृभक्तस्तु कृत्स्नशः । प्रयत्नात्प्राप्नुयात्तत्र सर्वमेव न संशयः यस्मै श्राद्धानि देयानि यच्च दत्तं महाफलम् | येषु वाऽप्यक्षयं श्राद्धं तीर्येषु च नदीषु च ॥ येषु च स्वर्गमाप्नोति तत्ते प्रोक्तं ससंग्रहम् वृहस्पतिरुवाच श्रुत्वैवं श्राद्धकल्पं तु योऽयां कुरुते नरः । स मज्जेन्नरके घोरे नास्तिकस्तमसाऽऽवृतः ७४७ ॥८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ ॥८५ ॥८६ ॥८७ दिन के प्रथमार्ध में श्राद्ध सम्पन्न करे, और कृष्णपक्ष में उनके उत्तरार्द्ध में करे, रोहिणी १ का उल्लंघन नहीं करना चाहिये, देश और काल के देखने वाले महान् तेजस्वी, महान् योगी एवं परम महात्मा उन पितरों की सर्वदा पूजा करनी चाहिये 1८०-८१ | पितरो मे भक्ति रखने वाला मनुष्य सर्वदा श्रेष्ठ योग की सिद्धि प्राप्त करता है । पितरों का ध्यान करने से वे अपने शुभाशुभ कर्म बन्वनो से छुटकारा पाकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। महात्मा कश्यप ने जगत् को मोहित करके यज्ञ के लिए जिस योग का उद्धारकर गुफा मे सुरक्षित रखा था, हे योग जानने वालो में प्रवीण ! उस अमरत्व पूर्ण, परमगोपनीय चिरन्तन एव परम महान् योगधर्म को उद्धृत करके सनत्कुमार ने प्रकाशित किया २८४ उस देवताओं की परमगोपनीय, ऋषियों को सर्वस्व योग सम्पत्ति को पितरों मे भक्ति रखने वाले भानव पितरों में भक्ति रखकर नित्य ही प्राप्त करते है । संक्षेप में उस योग की प्राप्ति पितृभक्त लोग अपने प्रयत्न सर्वाशतः प्राप्त कर लेते है – इसमें सन्देह नही है | जिसे श्राद्ध 'देना चाहिये, जिस वस्तु के देने से महान् फल की प्राप्ति होती है, जिन तीर्थो अथवा नदियों मे किये गये श्राद्ध का अक्षय फल होता है, जिन तीर्थो में करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है-उन सब को मै तुम से संग्रहपूर्वक वतला चुवा १८५-८७ बृहस्पति ने कहा -- इस प्रकार श्राद्ध विषयक चर्चा एवं उसकी विधियों को सुनकर जो मनुष्य दोष पन्दह भागो में विभक्त दिन का नवाँ भाग