पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७४४

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नवसप्ततितमोऽध्याय! ७२३ वेदे नियोगदातारो लोभमोहफलार्थिनः । ब्रह्मविक्रयिणश्चैव श्राद्धकर्मणि वर्जिताः ॥७३ न नियोगोऽस्ति वेदानां यो नियुङ्क्ते स पापकृत् । भोक्ता वेदफलाद्भ्रश्येद्दाता दानफलात्तथा ॥७४ ।।७५ भृतोऽध्यापयते यस्तु भूतकाध्यापितस्तु यः | नार्हतस्तावपि श्राद्धं ब्राह्मणः कथविक्रय क्रयविक्रयणौ चैव जीवितायें विर्गाहतौ । वृत्तिरेषा तु वैश्यस्य ब्राह्मणस्य तु पातकम् प्राहुर्वेदान्वेदविदो वेदान्यश्चोपजीवति । उभौ तौ नार्हतः श्राद्धं पुत्रिकापतिरेव च वृथा दारांश्च यो गच्छेद्यो यजेत वृथाऽध्वरे | नाईतस्तावपि श्राद्धं द्विजो यश्चैव नास्तिकः आत्मार्थ यः पचेदनं न देवातिथिकारकम् । नार्हतस्तावपि श्राद्धं पतितौ ब्रह्मराक्षसौ स्त्रियो नक्तपरा येषां परदाररताश्च ये । अर्थकामरताश्चैव न ताञ्श्राद्धेषु भोजयेत् वर्णाश्रमाणां धर्मेषु विरुद्धाः श्राद्धकर्माणि | स्तेनश्च सर्वयाजी व सर्वे ते पङ्क्तिदूषकाः ॥७६ ॥७७ ।७८ ॥७६ ॥८० ॥८१ में वर्जित है ।७१-७२। वेदवाक्यो में अपनी आज्ञा देनेवाले, अर्थात् वेद वाक्यों में मनमानी करनेवाले, लोभ और अज्ञानवश फल की आशा करनेवाले, ब्रह्म ( विद्या) का विक्रय करनेवाले जो ब्राह्मण हैं, वे भी श्राद्धकर्म में वर्जित हैं |७३| वेदवाक्यों में किसी को दखल देने का अधिकार नहीं है, जो उनमें अपनी आज्ञा लगाता है, वह पातकी है। ऐसे लोगों को श्राद्धकर्म में जो दान करता है वह दान के फल से भ्रष्ट ( वंचित) रहता है । और जो भोजन करता है वह वेदाध्ययन के फल से भ्रष्ट ( वंचित) रहता है । जो जीविका (रुपया आदि) लेकर किसी को पढ़ाता है ओर जो जीविका आादि लेकर पढ़ानेवाले अध्यापक से पढ़ता है - ये दोनों भी श्राद्धादि कर्म में प्रवेश पाने के अधिकारी नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही विद्या के ऋय और विक्रय करने रूप अपराध के अपराधी है । जीविका के लिए विद्या का क्रय विक्रय करना गर्हित है, यह वैश्यों की वृत्ति है, ब्राह्मण के लिए तो यह पातक है ।७४-७६। जो सामान्य कथाओं की भांति वेदवाक्यों को कहता है और जो वेदों का जाननेवाला, जीविका के लिए वेदों का पाठ आदि करता है — वे दोनों ही श्राद्धकर्म के योग्य नहीं हैं, इसी प्रकार पुत्री का पति अर्थात् जामाता भी श्राद्धकर्म में नियुक्त करने योग्य नहीं है | ७७॥ जो व्यर्थ में स्त्री के साथ समागम करता है, और जो व्यर्थ में हो यज्ञ में हवन करता है, वे दोनो भी श्राद्ध के योग्य नहीं हैं, इसी प्रकार नास्तिक द्विज भी श्राद्ध का अधिकारी नही है |७८॥ जो केवल अपने लिये अन्न पकाता है, और जो देवताओं और अतिथियों के लिये कुछ भी नहीं रखता, वे दोनों ही श्राद्ध के लिये अनुपयुक्त हैं, ऐसे ब्राह्मण पतित और ब्रह्मराक्षस हैं। जिनकी स्त्रियां रात्रि में पर पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, अथवा जो दूसरे को स्त्रियों के साथ व्यभिचार करते हैं, जो अर्थ एवं काम में सर्वथा लोलुप रहते हैं, ऐसे ब्राह्मणों को श्राद्धकर्म में भोजन नहीं कराना चाहिये |७६ | वर्णाश्रम की मर्यादा, धर्म एवं श्राद्धकर्म के विरोधी, चोरी करनेवाले, सव किसी से यज्ञ करानेवाले, या विना विचार के सव कुछ यज्ञ में करनेवाले ब्राह्मण पंक्तिदूपक है 140-८११ जो ब्राह्मण सुअर की तरह भोजन करता है, हथेली पर