पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७२८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

अष्टसप्ततितमोऽध्यायः उपरागे न कुर्याद्यः पङ्के गौरिव सोदति । कुर्वाणस्तूद्धरेत्पापान्मज्जनैरिव सागरे विश्वदेवं च सौम्यं च बहुमांसपरं हविः | विषाणं वर्जयेत्खाङ्गमसूयानाशनाय वै त्वष्टा वं वार्यमाणस्तु देवेशेन महात्मना । पिबञ्शचीपतेः सोमं पृथिव्यामपतत्पुरा शामाकास्तु तथोत्पन्नाः पित्रर्थमपि पूजिताः । विप्रुषस्तस्य नासाभ्यामसक्ताभ्यां तथेक्षवः श्लेष्माणः शीतला हृद्या मधुराश्च तथैक्षवः । श्यामाकैरिक्षुभिश्चैव पितॄणां सार्वकामिकम् ॥ कुर्यादाग्रयणं यस्तु स शीघ्र सिद्धिमाप्नुयात् श्यामाका हस्तिनामा च पटोलं बृहतीफलम् । अगस्त्यस्य शिखा तीव्रा कषायाः सर्व एव च एवमादीनि चान्यानि स्वादूनि मधुराणि च । नागरं चात्र व देयं दीर्घमूलकमेव च वंशोकरीराः सुरसा: सर्जकं भूस्तृणानि च । वर्जनीयानि वक्ष्यामि श्राद्धकर्मणि नित्यशः [+ लशुनं गुञ्जनं चैव पलाण्डुः पिण्डमूलकम् | करम्भाद्यानि चान्यानि होनानि रसगन्धतः ७०७ + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ङ. पुस्तके नास्ति | १. आनन्दाश्रम की प्रति का मूल गत पाठ भ्रामक समझ कर यहाँ छोड़ दिया गया है । ॥४ ॥६ ॥७ ॥८ 11E ॥१० ॥११ ॥१२ फंसी गौ को तरह यातना सहता है । और जो करता है वह अपने पापों से सागर में नाव? की तरह उद्धार पा जाता है |२-४॥ विश्व देव, सौम्य और प्रचुर मांस युक्त हवि, गैंड़े का सींग पितरों की असूया ( द्वेष ) नष्ट करने के लिये वर्जित रखना चाहिये | ५१ प्राचीन काल में महात्मा देवेश के निषेध करने पर भी त्वष्टा (विश्वकर्मा) ने शचीपति (इन्द्र) का सोमरस पान किया था उनके पोते समय पृथ्वी पर वह गिर पड़ा, जो साँवा के रूप में उत्पन्न हुआ । पितरों के लिए वह पूजित माना गया है । उसी समय पीते हुए त्वष्टा के अशक्त नासिका के छिद्रों से उस सोमरस के बूंद भी पृथ्वी पर गिरे, जो ईख के रूप में उत्पन्न हुए। इसी कारण ईखें शीतलता प्रदान करनेवाली, रुचिकर, मधुर और कफ कारक होती ईखों से पितरों की सारी कामनाएँ पूर्ण होती है। जो इन दोनों वस्तुओं को श्राद्धकर्म वह शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त करता है |६-८ साँवा, हस्तिनाम, पटोल, वृहतीफल, अगस्त्य को तीखी शिखाएँ, ये सभी कषाय स्वादुवाले हैं। इसी प्रकार अन्यान्य सुस्वादु एवं मधुर द्रव्य पितरों को प्रिय हैं। श्राद्धकर्म में नागर और दोर्घमूलक भी देना चाहिये |६-१०। इसी प्रकार वंशी करीर, सुरसा सजंक और भूस्तृण भी देने चाहिये । श्राद्धकर्म में सर्वदा जो वर्जित वस्तुएँ हैं, उन्हें बतला रहा हूं |११| लहसुन, गाजर, प्याज, पिण्डमूलक, करम्भ आदि वस्तुएं, जो रस और गन्ध से निन्द्य हैं, श्राद्धकर्म में वर्जित रखनी चाहिये, इनका कारण बतला रहा है। इन साव और निवेदित करता है - अनुवादक