पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६९२

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त्रिसप्ततितमोऽध्यायः एतेषां मानसी कन्या यशोदा नाम विश्रुता । पत्नी सा विश्वमहतः स्नुषा वै विश्वशर्सणः राजर्षेर्जननी देवी खट्वाङ्गस्य महात्मनः । यस्य यज्ञे पुरा गीता गाथा दिव्यैर्महर्षिभिः अग्नेर्जन्म तथा दृष्ट्वा शाण्डिल्यस्य महात्मनः । यजमानं दिलीपं ये पश्यन्ति सुसमाहिताः सत्यव्रतं महात्मानं ते स्वर्गेजयिनोऽमराः | आज्यपा नाम पितरः कर्दमस्य प्रजापतेः समुत्पन्नस्य पुलहादुत्पन्नास्तस्य वै पुनः | लोकेष्वेतेषु वर्तन्ते कामगेषु विहंगमाः एतान्वैश्यगणाः श्राद्धे भावयन्ति फलार्थिनः । एतेषां मानसी कन्या विरजा नाम विश्रुता ययातेर्जननी साध्वी पत्नी सा नहुषस्य तु । सुकाला नाम पितरो वसिष्ठस्य प्रजापतेः हिरण्यगर्भस्य सुताः शूद्रास्तान्भावयन्त्युत | मानसा नाम ते लोका वहन्ते यत्र ते दिवि एतेवां मानसी कन्या नर्मदा सरितां वरा | सा भावयति भूतानि दक्षिणापथगामिनी जननी त्रसदस्योहि पुरुकुत्सपरिग्रहः । एतेषामभ्युपगमान्मनुर्मन्वन्तरेश्वरः सम्वन्तरादौ श्राद्धानि प्रवर्तयति सर्वशः । पितॄणामानुपूर्व्येण सर्वेषां द्विजसत्तमाः तस्मादिह स्वधर्मेण श्राद्धं देयं तु श्रद्धया। सर्वेषां राजतैः पात्रैरपि वा रजतान्वितैः ६७१ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० ॥५१ प्राप्ति के इच्छुक प्राणी भावना ध्यान या पूजा करते हैं । इनकी मानसी कन्या यशोदा नाम से विख्यात है, जो विश्व महत की पत्नी, विश्वशर्मा को पुत्र वधू और उस महात्मा राजर्षि खट्वान की माता थी । प्राचीन काल में जिसके यज्ञ में दिव्य गुण सम्पन्न महर्षियों ने गाथाओं का गान किया था |३८-४१ स्वर्ग के जीतने वाले समाहित चित्त वृत्ति सम्पन्न वे पितरगण यज्ञ में अग्नि का जन्म देखने के उपरान्त महात्मा शाण्डिल्य के सत्यव्रत परायण एवं महात्मा यजमान दिलीप का दर्शन करते हैं जिनके नाम आज्यपा हैं, ये प्रजापति कदम के पि रगण हैं जिनकी उत्पत्ति पुलह से हुई थी, उन्हीं के यहाँ इनकी पुनः उत्पत्ति हुई, इन लोकों में ये आकाशचागे पितरगण अपने इच्छानुरूप भ्रमण करते है | शुभ फल प्राप्ति के इच्छुक वैश्यगण श्राद्धो में इनकी भावना करते हैं । इन की मानसी कन्या विरजा नाम से विख्यात है, जो ययाति को माता और नहुष की प्रतिव्रता पत्नी थी ४२-४५१३। प्रजापति वशिष्ठ के सुकाल नामक पितरगण हैं, जो हिरण्य गर्भ के पुत्र हैं। इन पितरों की भावना शूद्र लोग करते हैं। स्वर्ग में मानस नामक लोक है, जिनमें ये निवास करते हैं। इनकी मानसी कन्या नदियों में श्रेष्ठ नर्मंदा है, ( भारतभूमि) के दक्षिणापथ में बहती हुई वह सभी जीवों को पवित्र करती है । वह नर्मंदा त्रसदस्यु को माता और पुरुकुत्स की पत्नी थी । इन्हीं उपर्युक्त पितरों के कारण मनु मन्वन्तर के अधीश्वर हैं ।४६-४६ और मन्वन्तर के आदिम काल में वे सब प्रकार के श्राद्धों का प्रवर्तन करते हैं। द्विजवर्यवन्द, समस्त पितरों का वर्णन क्रमश: आप लोगों को सुना चुका। इन सब कारणों से मनुष्य को इस लोक में आकर अपने धर्म के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्धादि कर्म करने चाहिये, इन सत्र में