पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७२

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सप्ततितमोऽध्यायः अत ऊर्ध्वं निबोधध्वमिन्द्रप्रतिमसंभवम् । वसिष्टस्य कपिञ्जल्यां घृताच्यां समपद्यत || कुशीतिया समाख्यात इन्द्रप्रतिम उच्यते 1 पृथोः सुतायाः संभूतः पुत्रस्तस्याभवद्वसुः । उपमन्युः सुतस्तस्य यस्येमे उपमन्यवः मित्रावरुणयोश्चैव कुण्डिनो ये परिश्रुताः । एकार्षेयास्यथैवान्ये वसिष्ठा नाम विश्रुताः ॥ एते पक्षा वसिष्ठानां स्मृता एकादशैव तु इत्येते ब्रह्मणः पुत्रा मानसा ह्यष्ट विश्रुताः । भ्रातरः सुमहाभागा येषां वंशाः प्रतिष्ठिताः त्रोंल्लोकान्धारयन्तीमान्देवषिगणसंकुलान् । तेषां पुत्राश्च पौत्राश्च शतशोऽथ सहस्रशः ॥ यैर्व्याप्ता पृथिवी सर्वा सूर्यस्येव गभस्तिभिः इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते उपोद्धातपाद ऋषिवंशानुकीर्तनं नाम सप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७० ॥ ६५१ श्रीवायुमहापुराण में ऋषिवंशानुकीर्तन नाम सत्तरवा अध्याय समाप्त ॥७१॥ ॥८८ ॥८६ ॥६० ॥६१ ॥६२ नील-ये आठ पराशर गोत्र में उत्पन्न होनेवाले महापुरुषों के गोत्र कर्ता है। अब इसके उपरान्त इन्द्रप्रतिम के पुत्रों का विवरण सुनिये । कपिञ्जली घृताची में वशिष्ठ के कुशीति ( ऋणति ) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो इन्द्रप्रतिम नाम से प्रसिद्ध है |८६-८८पृथु की पुत्री में उनके वसु नामक एक अन्य पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका पुत्र उपमन्यु हुआ, जिनके वंश में उत्पन्न होनेवाले ये उपमन्यु गोत्रीय है । मित्रावरुण के वंश में उत्पन्न होनेवाले जों कुण्डी नाम से विख्यात वंशधर हैं, वे एक ही मूल ऋषि के वंशधर हैं और अन्य वशिष्ठ नाम से विख्यात हैं | वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न होनेवालों के ग्यारह गोत्र कर्ता है । ये उपर्युक्त आठ ब्रह्मा के मानस पुत्र रूप में विख्यात हैं और ये सब लोग महाभाग्यशाली हैं, इनके वंश आज तक भूमण्डल पर प्रतिष्ठित है। देवताओं तथा ऋषि- वृन्दों से सकुलित इन तीनों लोकों को ये धारण करते है। उनके उन पुत्र पौत्रादिको की संख्या सैकड़ों ही नहीं सहस्रों तक है, जिन्होंने सूर्य की किरणों की भाँति समस्त पृथ्वी को व्याप्त कर रखा है |८९-९२॥ ये