पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६७१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

६५० वायुपुराणम् तस्य गोत्रान्वये जाताश्चत्वारः प्रथिता भुवि | श्यामाश्च मुद्गलाश्चैव बलारकगविष्ठिराः ॥ एते नृणां तु चत्वारः स्मृताः पक्षा महौजसाम् Sourareer पर्वतोऽरुन्धती तथा । जज्ञिरे च त्वरुन्धत्यास्तान्निबोधत सत्तमाः नारदस्तु वसिष्ठायारुन्धतीं प्रत्यपादयत् । ऊर्ध्वरेता महातेजा दक्षशापात्तु नारदः पुरा देवासुरे तस्मिन्सङ्ग्रामे तारकामये । अनावृष्ट्या हते लोके व्यग्रे शक्के सुरैः सह ॥ वसिष्ठस्तपसा धीमान्धारयामास वै प्रजाः ॥७८ १७६ ||८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ अन्नौषधं मूलफलमोषधोश्च प्रवर्तयन् | तास्तेन जोवयामास कारुण्यादौषधेन तु अरुन्धत्यां वसिष्ठस्तु शक्तिमुत्पादयद्द्वजाः । सागरं जनयच्छक्ते रदृश्यन्ती पराशरम् ? काला पराशराज्जज्ञे कृष्णद्वैपायनं प्रभुम् । द्वैपायनादरण्यां वै शुको जज्ञे गुणान्वितः उत्पद्यन्ते च पीवर्या षडिमे शुकसूनवः । भूरिश्रवा प्रभुः शंभुः कृष्णो गौरश्च ) पञ्चमः कन्या कीर्तिमती चैव योगमाता दृढव्रता । जननी ब्रह्मदत्तस्य पत्नी सात्वगृहस्य च श्वेताः कृष्णाश्च गौराश्च श्यामा धूम्राः समूलिकाः । ऊष्मपा द्वारकाश्चैव नौलाश्चैव पराशराः ॥ पाराशराणामण्टौ ते पक्षाः प्रोक्ता महात्मनाम् ॥८५ ॥८६ ॥८७ - ऐसा पुराणज्ञ लोग कहते है |७१-७७। उनके गोत्र में उत्पन्न होनेवाले चार वंश पृथ्वी पर विख्याति प्राप्त कर चुके है। उनके नाम है, श्याम, मुद्गल, बलारक और गविष्ठिर । महान् तेजस्वी मनुष्यो के ये चार वंश गोत्र कर्त्ता हैं । कश्यप से नारद, पर्वत तथा अरुन्धती की उत्पत्ति हुई । हे पण्डित गण ! अरुन्धती में उत्पन्न होने वाली सन्ततियों का विवरण सुनिये । नारद ने अरुन्धती को वसिष्ठ को समर्पित किया। नारद महान् तेजस्वी एव नैष्ठिक ब्रह्मचर्य व्रत परायण थे । प्राचीन काल मे दक्ष के शाप के कारण जब देवताओ और मसुरों मे विख्यात तारकामय नामक संग्राम छिड़ा था, और अनावृष्टि के कारण समस्त लोक ध्वस्त हो गया था और देवताओं समेत देवराज इन्द्र व्याकुल हो गये थे, उस समय परम बुद्धिमान् वसिष्ठ ने अपने तपोवल से प्रजाओ की रक्षा की थी ।७८-८१। उस समय उन्होंने अन्न, औषघि मूल फल, आदि को रचना की, और अति करुणा वश उन्हीं औषधियों द्वारा प्रजावर्ग को जीवित रखा था । द्विजवृन्द ! वसिष्ठ ने अरुन्धती मे शक्ति को उत्पन्न किया । अदृश्यन्ती (?) ने शक्ति के संयोग से पराशर को जन्म दिया । काली ने पराशर के संयोग से परम ऐश्वर्य शाली कृष्ण द्वैपायन को उत्पन्न किया । द्वैपायन के संयोग से अरणी मे परम गुणवान शुक की उत्पत्ति हुई । पीवरी में शुक के ये छ पुत्र उत्पन्न हुये, भूरिश्रवा, प्रभु, शंभु, कृष्ण और पांचवें गौर 1८२-८५ | कीर्तिमती नामक कन्या भी उत्पन्न हुई जो योगाभ्यास मे सर्वदा निरत रहनेवाली तथा दृढव्रत परायण थी । वह ब्रह्मदत्त की माता और सत्त्वगुह की स्त्री हुई। श्वेत, कृष्ण, गौर, श्याम धूम्र समूलिक, ऊष्मपान करनेवाले दारक तथा