पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५५

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६३४ वायुपुराणम् पथो नद्योऽथ तीर्थानि चैत्यवृक्षान्महापथान् | पिशाचा विनिविष्टा वै स्थानेप्वेतेषु सर्वशः ।।२८४ अधार्मिका जनास्ते वै आजोवा विहिताः सुरैः । यर्णाश्रमाः संकरिकाः कारुशिल्पिजनास्तथा ॥२८५ अमृतोपमसत्त्वानां चौरविश्वासघातिनाम् । एतैरन्यैश्च बहुभिरन्यायोपार्जितंर्धनः ॥ आरभन्ते क्रिया यास्तु पिशाचास्तत्र देवता: ॥२८६ ॥२८७ मधुमांसौदनैर्दघ्ना तिलचूर्णसुरासवः । धूपैर्हारिद्रकृशरैस्तै लभद्रगुडौदनैः कृष्णानि चैव वासांसि धूपाः सुमनसस्तथा । एवं युक्ताः सुवलयस्तेषां वै पर्वसंधिषु ॥ पिशाचानामनुज्ञाय ब्रह्मा सोऽधिपतिर्ददौ ॥२८८ ॥२८९ सर्वभूतपिशाचानां गिरिशं शूलपाणिनम् | दंष्ट्रा त्वजनयत्पुत्रान्व्याघ्रान्सिहांश्च भामिनी द्विपिनश्च सुतास्तस्य व्यालेयाश्चाऽऽमिषाशिनः | पायाश्चापि कात्स्येंन प्रजासगं निवोधत ॥ तस्य दुहितरः पश्च तासां नामानि मे शृणु मीना माता तथा वृत्ता परिवृत्ता तथैव च | अनुवृत्ता तु विज्ञेया तासां वै शृणुत प्रजाः सहस्रदन्ता मकरा: पाठीनास्तिमिरोहिताः । इत्येवमादिहि गणा मैनो विस्तीर्ण उच्यते ॥२६० ॥२६१ ॥२६२ आवास, पथ, नदियाँ, तीर्थ, देवी देवताओं के कल्पित निवास वृक्ष और महापथ ( श्मशान मार्ग ) इन स्थानों में सर्वत्र पिशाचगण निवास करते हैं । जो अधार्मिक जन है वर्णाश्रम की मर्यादा से वहिर्भूत हैं वर्णसंकर है, कारीगरी या शिल्पकर्म करनेवाले हैं देवताओं ने उनको ही इन पिशाचों की आजीविका बनाई है । चोरी, विश्वासघात, अमृत ?) तुल्य जीवों एवं इनके अतिरिक्त अन्यान्य कुत्सित उपायों द्वारा उपार्जित धन से जो क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं, उनमे देवता पिशाच होते हैं |२८३-२८६ मधु, मांस, भात, दही. तिलचूर्ण. मदिरा, आसव, धूप, हरिद्रा, खिचडी, तेल, मोथा गुण और भात ( एक मे ) काले वस्त्र, धूप और पुष्प - इन सब सामग्रियों समेत पर्वो की सघियो के अवसर पर पिशाचों की बलि देनी चाहिये । ऐसौ आज्ञा ब्रह्मा ने उन पिशाचों को दी और शूलपाणि महेश्वर को उन सभी भूतों एवम् पिशाचों का स्वामी नित किया |२८७-२८८| सुन्दरी दष्ट्रा ने व्याघ्रों और सिहों को पुत्ररूप मे उत्पन्न किया । इनके अतिरिक्त चोते, अन्य प्रकार के बाघ और शेर तथा अन्यान्य मांसभक्षी वन्य पशुओं को उसने उत्पन्न किया | अब इसके उपरान्त ऋषा की सम्पूर्ण प्रजाओं का विस्तार क्रम सुनिये । उसकी पाँच कन्याएँ थी, जिनके नाम मैं बतला रहा हूँ, सुनिये । मोना, माता, वृत्ता, परिवृत्ता तथा अनुवृत्ता-ये पाँच उनकी कन्याएँ थी, इनके पुत्रादिको का वर्णन सुनिये । सहस्र दाँतवाले मकर, पाठीन (जलजन्तु) तिमि, (मछली विशेष) रोहित, (रोहू) – ये सब मोनो के भेद मीना की सन्तानों में कहे गये है।२८६-२६२। इसके अतिरिक्त छोटे और बड़े, चार प्रकार के ग्राह, निष्क