पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५४

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नवर्षाष्टतमोsध्याय: ६३३ आयुक्तांश्च विशन्तीह निपुणास्ते पिशाचकाः । आकर्णदारितास्याश्च लम्बभ्रूस्थूलनासिकाः ॥२७६

  • शून्यागाराश्रयाः स्थूलाः पिशाचा: पूरणास्तु ते । हस्तपादाक्रान्तगणा ह्रस्वकाः क्षितिदृष्टयः ||

चालादास्ते पिशाचा वै सूतिकागृहसेविन: ॥२७७ ॥२७८ पृष्ठतः पाणिपादाश्च ह्रस्वका वातरंहसः । पिशितादाः पिशाचास्ते सङ्ग्रामे रुधिराशिनः नग्नका ह्यनिकेताश्च लम्बकेशाश्च पिण्डकाः । पिशाचा: स्कन्दिनस्ते वै अन्या उच्छेषणाशिनः ॥ षोडश जातयस्तेषां पिशाचानां प्रकीर्तिताः ॥२७६ एवंविधान्पिशाचांस्तु दीनान्दृष्ट्वाऽनुकम्पया | तेभ्यो ब्रह्मा वरं प्रादात्कारुण्यादल्पचेतसः ॥ अन्तर्धानं प्रजास्तेषां कामरूपत्वमेव च ॥२८० उभयोः संध्ययोश्चारं स्थानान्यजीवमेव च | गृहाणि यानि भग्नानि शून्यान्यल्पजनानि च विध्वस्तानि च यानि स्युरनाचारोषितानि च । असंस्पृष्टोपलिप्तानि संस्कारैर्वजितानि च राजमार्गोपरथ्याश्च निष्कुटाश्चत्वराणि च । द्वाराण्यट्टालकाश्चैव निर्ममान्संक्रमांस्तथा ॥२८३ ॥ २८१ ॥२८२ तक फैले हुये रहते है, भौह लंबी होती है, और नाक मोटी होती है। वे पूरण नामक-पिशाचगण हैं, जो शून्य भवनो मे निवास करते है, उनके शरीर होते हैं, उनके हाथ और पैर बहुत छोटे-छोटे होते है और आँखे पृथ्वी पर लगी रहती है, ये पिशाचगण बालको का भक्षण करनेवाले है और सर्वदा सूतिका गृहों का सेवन करते है ।२७५-२७७, मास भक्षण करनेवाले पिशाचो के हाथ और पैर पीछे की ओर होते है, कद के छोटे होते है, वायु समान वेगवान् होते है, ये संग्राम भूमि मे जाकर रक्त का आहार करते हैं। स्कन्दी कहे जानेवाले पिशाचगण नग्न रहते है, उनके रहने का कोई नियत स्थान नहीं रहता, केश लवे होते हैं, पिण्डाकार दिखाई पड़ते है, इनके अतिरिक्त अन्य पिशाचगण उच्छेषणाशी ( जूठा खानेवाले ) होते है | इन पिशाचो की सोलह (?) जातियो का वर्णन किया जा चुका |२७८-२७६। इस प्रकार अपनी प्रजाओ मे विभिन्न आकृति एवं गुण दोषवाले इन पिशाचो को अल्पबुद्धियुक्त एवं दीन अवस्था में देख ब्रह्मा ने अनुग्रपूर्वक अर्न्तधान होने, तथा इच्छानुसार विविध स्वरूप धारण करने का वरदान दिया। ये पिशाचगण दोनो सन्ध्याओं (प्रातः एवं सायम् ) के अवसर पर विचरण करते हैं, उनकी जीविका एवं रहने के स्थानों को बतला रहा हूँ । जो भवन टूटे फूटे रहते है, थोड़े आदमी निवास करते है, विध्वस्त हो जाते हैं, अत्याचारी समेत निवास किया जाता है, असंस्कृत अथवा विना लिपे पुते रहते है, स्पर्श नही किये जाते उनमें ये निवास करते है ।२८०-२८२। इसके अतिरिक्त राजमार्ग, (सड़क ) गलियां घर के समीप के उपवन, चबूतरे या चौराहे, द्वारदेश निर्मम अट्टालक, एकान्त ★★ इदमधं नास्ति क. पुस्तके | फा०-८०