पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५१

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वायुपुराणम् ॥२५० ॥२५१ एकपादाद्विपादांश्च त्रिपादान्वहुपादकान् । महायोगान्महासत्त्वान्सुतपक्वान्महावलान् सर्वत्रगानप्रतिघान्ब्रह्मज्ञान्कामरूपिणः | घोरान्क्रूरांच मेव्यांश्च शिवान्पुण्यान्सवादिनः कुशहस्तान्महाजिह्वान्महाकर्णान्महाननान् । हस्तादांश्च सुखादांश्च शिरोदांश्च कपालिनः ॥२५२ धन्दिनो सुगरधरानसिशूलधरांस्तथा । दीप्तास्यान्दीप्तनेत्रांश्च चित्रमाल्यानुलेपनान् अन्नादान्पिशितादांश्च बहुरूपान्सुरूपकान् । रात्रिसंध्याचरान्घो रान्कांश्चित्सौम्यान्दिवाचरान् नक्तंचराम्सुदुःप्रेक्ष्यान्धोरांस्तान्वै निशाचरान् ॥२५३ ॥२५४ ॥२५५ परत्वे च भयं देवं सर्वे ते गतमानसाः । नैषां भार्याऽऽस्ति पुत्रो वा सर्वे ते ह्यर्ध्वरेतसः शतं तानि सहस्राणि भूतानागात्सयोगिनाम् । एते सर्वे महात्मानो भूत्याः पुत्राः प्रकीर्तिताः ॥२५६ ६३० किसी-किसी के एक हाथ थे तो कोई कोई दो हाथोवाले थे, किसी-किसी के तीन हाथ थे, और ऐसे भी थे, जिन्हे एक हाथ भी नहीं था। इसी प्रकार कोई-कोई एक पादवाले, कोई-कोई दो पादवाले, कोई-कोई तीन पादवाले तथा कोई-कोई इससे भी अधिक अनेक पादोवाले थे | उनमे से कितने महान् पराक्रमी थे, कितने महान् योगाभ्यासी थे, कितने सुतपक्व ( १ ) थे, कितने महावलवान् थे। कितने ऐसे थे, जो सर्वत्र जा सकते थे, कितने निष्क्रोधी थे, कितने इच्छानुसार विविध स्वरूप धारण करनेवाले पे | २४८-२५०३१३। और ऐसे भी कितने थे जो परम घोर, तथा क्रूर स्वभाववाले थे, कितने परम पवित्र, कल्याणकारी, पुण्यकर्त्ता एवं प्रिय बोलनेवाले थे । कुछ हाथो मे कुश लिये रहते थे, किसी की जिह्वाएँ बहुत बड़ी थीं, किसी के कान बहुत लम्वे थे, किसी के मुख वहुत भीपण थे । कोई हाथों से खानेवाले थे, कोई मुख से खानेवाले थे, कोई शिर से खानेवाले थे, कोई-कोई मुण्डमाला पहिने हुये थे । कोई-कोई हाथों मे धनुप धारण किये हुये थे, कोई-कोई मुद्गर धारण किये थे, कोई-कोई तलवार तथा शूल धारण किये थे, कितनों के नेत्र उद्दीप्त हो रहे थे, कितनों के मुख उद्दीप्त हो रहे थे, कितने विचित्र ढंग की मालाएँ धारण किये थे तो कितने विचित्र चन्दनादि का लेप किये थं | उनमे से कुछ अन्नाहार करनेवाले थे, कुछ मासाहारी थे, कितने अनेक स्वरूप धारण करनेवाले थे, कितने अति सुन्दर स्वरूपवाले थे । उनमें से कितने रात्रि तथा संध्या मे गमन करनेवाले थे कितने अति घोर दिखाई पढ़नेवाले थे, कितने अति सौम्य दिखाई पड़नेवाले थे । कितने केवल दिन को चलनेवाले थे, कितने रात्रि को चलनेवाले थे, कितने अति कठिनाई से देखे जानेवाले थे ( अर्थात् इतने घोर स्वरूपवाले थे कि लोगों का उनको ओर देखने का साहस ही नही होता था ) । इस प्रकार उन निशिचरों को भूति ने उत्पन्न किया । वे सव भूति के पुत्रगण एकमात्र महादेव में चित्त लगानेवाले थे | इन सबों के न तो स्त्री थी म पुत्र थे, सब के सव ब्रह्मचारी थे । इन आत्मयोगी भूतों की संख्या एक लाख थी, भूति के इन सब महात्मा पुत्रों की चर्चा कर १. संख्या पन्द्रह ही होती है ।