पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५०

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नवर्षाष्टितमोsध्याय: ६२६ ॥२४१ ॥२४२ ॥२४४ अपरेण तु लौहित्यमासिन्धोः पश्चिमेन तु । यमस्यैतद्वनं प्रोक्तसनुपर्वतमेव तत् भूर्तिविजज्ञे भूतांश्च रुद्रस्यानुचरान्प्रभो | स्थूलात्कृशांश्च दीर्घाश्च वामनान्हस्वान्समान् लम्बकर्णान्प्रलम्बोष्ठात्लम्बजिह्वांस्तनोदरान् । एकरूपान्विरूपांच लम्बस्फिक्स्थूलपिण्डिकान् ॥ २४३ सरोवरसमुद्रादिनदोपुलिनवासिनः | कृष्णान्गौरांश्च नीलांश्च श्वेतांश्च लोहितारुणान् व न्वै शबलान्धू प्रान्कद्रराक्षसदारुणान् | मुञ्जकेशान्हृषीकेशान्सर्पयज्ञोपवीतिनः विसृष्टाक्षान्विरूपाक्षात्कृशाक्षानेकलोचनान् । बहुशीर्षान्विशीर्षाश्च एकशीर्षानशीर्षकान् ॥२४६ चण्डांश्च विकटांश्चैव-विरोमान्रोमशांस्तथा । अन्धांश्च जटिलांश्चैव कुब्जान्हेषकवामनान् ॥२४७ सरोवरसमुद्रादिनदो पुलिनसेविनः । एक कर्णान्महाकर्णाञ् शङ्ककर्णानकर्णिकान् ॥२४५ ॥२४८ दंष्ट्रिणो नखिनश्चैव निर्दन्तांश्च द्विजिह्वान् । एकस्तान्द्विहस्तांश्च त्रिहस्तांश्चाप्यहस्तकान् ॥२४६ (?) देश पर्यन्त, जो पाँचवा जंगल है, वह एक मात्र (?) वामन नामक हस्ती के वंशजो का जंगल कहा जाता है | लौहित्य, (ब्रह्मपुत्र ) के दूसरे तट से पश्चिम, समुद्र तट के पर्वत के समीप तक यम का वन कहा गया है ।२३९-२४१। है प्रभो ! भूति ने रुद्र के अनुचर भूतों को उत्पन्न किया जिनमें से कुछ बहुत मोटे, कुछ बहुत पतले, कुछ विशालकाय, कुछ वौने, कुछ बहुत ही छोटे, कुछ समान आकार वाले थे, इसी प्रकार लम्बे कान वाले, लम्बे होठों वाले, लम्बी जीभवाले, लम्बे स्तन और लम्बे पेटवाले थे। कुछ एक ही तरह के रूपवाले थे तो कुछ एकदम कुरूप थे, कुछ के स्फिक् (नितंब चूतड़) बहुत लम्बे थे, कुछ के मोटे पिण्डाकार पेट निकले हुये थे । ये भूत गया सरोवर, समुद्र, नदी आदि जलाशयों के तट पर निवास करने वाले थे। इनमें से कुछ का वर्ण के कुछ गोरे वर्ण के कुछ नीले वर्ण के, कुछ श्वेत वर्ण के, कुछ लोहित और अरुण वर्ण के थे ।२४२-२४४। इसी प्रकार कुछ गहरे पीले वर्ण के; कुछ चितकबरे रंग के, कुछ धुएँ के वर्ण के, तथा कुछ हल्के पीले रंग के थे, ये सभी भूत गण दारुण राक्षसों समान उग्र स्वभाव वाले थे । इनमें से कोई मुंजकेश; कोई हृषीकेश तथा कोई सर्प का यज्ञोपवीत धारण करनेवाले थे | किसी की आँखें फूटी हुई थी, किसी की आँखें अतिशय कुरूप थीं, किसी को आँखें बहुत बैठी हुई थीं तथा किसी की एक आँख ही फूटी हुई थी। कोई अनेक शिरवाले थे, कोई शिरोविहीन थे, कोई एक शिरवाले थे, किसी के शिर था ही नहीं । कोई अतिशय उग्र स्वभाव वाले थे, कोई अत्यन्त विकट स्वभाववाले थे, कोई रोमावली विहीन थे, कोई बहुत रोमवाले थे, कोई अन्धे थे कोई लंबी-लंबी जटाओंवाले थे, कोई कुबड़े थे, कोई चिग्घाड़नेवाले तथा बौने थे | ये सब के सब सरोवर, समुद्र, नदी तट पर निवास करते थे |२४५-२४७३। इनमें किसी - २ के एक कान था, कोई २ बहुत बड़े कानवाले थे, किसी-किसी के कान शंकु (खूंटे) के समान थे, कोई कोई कान विहीन थे । किसी-किसी के दाँत बहुत बड़े थे, किसी-किसी के नख बढ़े हुये थे, किसी-किसी के एक भी दांत नही थे, कोई-कोई दो जिह्वावाले थे । १. मूंज के समान केशवाले ।