पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६४८

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सबषष्टितमोsध्याय: ॥२२५ ॥२२६ सुप्रतीकस्तु रूपेण नास्त्यस्य सदृशो गजः | तस्य प्रहारी संपाती पृथुश्चित्तिसुतास्त्रयः पशवो दीर्घताल्वोष्ठाः सुविभक्तशिरोदराः । जायन्ते मृदुसंभूता वंशे तस्य मतङ्गजाः अञ्जनादञ्जना साम्तो विजज्ञे चाञ्जनावतो | + एवं माता तयोश्चापि प्रथितायुरजः सुतौ ॥२२७ महाविभक्तशिरसः स्निग्धजीदूतसंनिभाः । सुदर्शनाः सुवर्ष्माः पद्माभा परिमण्डलाः ॥ ६२७ शूना: पीतायतसुखा गजास्तस्यान्वयेऽभवन् ॥२२५ जज्ञे चन्द्रमसः साम्नः पिङ्गला कुमुदद्युतिः । पिङ्गलायाः सुतौ तस्य महापद्मोमिमालिनौ ॥२२४ समायवरदांश्चण्डान्प्रवृद्धबलिनोदरान् । हस्तियुद्धे प्रियान्नागान्विद्धि तस्य कुलोद्भवान् एतान्देवासुरे युद्धे जयार्थे जगृहुः सुराः । हृतार्थेश्च विसृष्टास्ते पूर्वोक्ताः प्रययुदिशः एतेषामन्वये जायान्विनीतांस्त्रिदशा ददुः | अङ्गाय लोमपादाय सूत्रकाराय वै द्विपान् ॥२३० ॥२३१ ॥२३२ गज दूसरा नहीं है, उसके प्रहारी संपानी और पृथुश्चित्ति नामक तीन पुत्र थे |२२४-२२५॥ इनके वंश में मत्तगज पशुगण ? लम्बी तालु वड़े होठ और विभक्त शिर तथा उदर भाग एवं मनोहर अंगों वाले उत्पन्न होते हैं । अञ्जन से अञ्जना और साम से अञ्जवती का जन्म हुआ। इन दोनों को माता भी आयुरज (?) की पुत्री कही गई है। इनके वंश में उत्पन्न होने वाले मज अत्यन्त विभक्त शिर वाले, जल से पूर्ण बादल के समान काले वर्ण के, देखने में अति सुन्दर शरीर वाले, कमल के समान परिमण्डल वाले, मोटे ताजे, और पीले चौड़े मुख वाले होते थे |२२६-२२८/ चन्द्रमा और साम से पिंगला कुमुदद्युति की उत्पत्ति हुई । उस पिंगला के महापद्म और उर्मिमाली नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये । उसके कुल में उत्पन्न नागों को अत्यन्त उग्र स्वभाव वाले, वलशाली, लम्बे, पेट वाले विशाल दांतों वाले तथा हस्ति युद्ध में रुचि रखने वाले समझिये। देवासुर संग्राम में देवताओं ने इन्ही हस्तियों को विजय लाभार्थ अपने पास रखा और कार्य में सफलता प्राप्त कर लेने के उपरान्त उन्हे छोड़ दिया, जिससे उपर्युक्त सभी हस्ती विभिन्न दिशाओं को चले गये । इन्ही के वंश में उत्पन्न, विनम्र स्वभाव वाले हस्तियों को देवलाओं ने अंग, लोमपाद सूत्रकार को दिया। दो रद ( दाँत) होने के कारण इनका द्विरद नाम पड़ा, हस्त (शुण्ड ) के कारण हस्ती और कर ( शुण्ड) के कारण करो कहते हैं । वरण ( पूजन ) होने के कारण इन्हे वारण, दो दाँतों के कारण दन्ती गर्जन (चिग्घाड़ने) के कारण गज कुञ्जों में विचरण करने के कारण कुञ्जर, नगोर ( पर्वतों ओर वृक्षों) १. यहाँ पुलिंग 'सुतो' पाठ है, जिसकी कोई संगति नहीं बैठती । २. हाथी पर्वतों की चट्टानों एव वृक्षों की शाखाओं आदि के तोड़ने फोड़ने में प्रसिद्ध ही है ।