पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६०१

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वायुपुराणम् यातुधानान्विशन्त्येताः पिशाचांश्चैव तान्नरान् । एकत्वेन पृथक्त्वेन स्वयंभूर्व्यवतिष्ठते गुणमात्रात्मिकाभिस्तु तनुभिर्मोहयन्प्रजाः । तेष्वेकं यजते यस्तु स तदा यजते त्रयम् तस्माद्देवास्त्रयो ह्येते नैरन्तर्ये व्यवस्थिताः । तस्मात्पृथक्त्वमेकत्वसंख्या संख्यागतागतम् ॥ एकत्वं वा बहुत्वं वा तेषु को ज्ञातुमर्हति ।१२० ॥१२१ यस्मात्सृष्ट्वाऽनुगृह्णोते ग्रसते चैव ते प्रजाः । गुणात्मकत्वात्त्रैकाल्ये तस्मादेकः स उच्यते रुद्रं ब्रह्माणमिन्द्रं च लोकपालानुषीन्दनून् । देवं तमेकं बहुधा प्राहुर्नारायणं द्विजाः प्राजापत्या तनुर्या च तनुर्या चैव वैष्णवी | मन्वन्तरे च कल्पे च आवर्तन्ते पुनः पुनः ॥१२२ ।।१२३

  • क्षेत्रज्ञो अ (ह्य)पि चाऽऽनेष्य विभजेदित्यनुग्रहात् | तेजसा यशसा बुद्ध्या श्रुतेन च वलेन च ॥

जायन्ते तत्समाश्चैव तानपीह निवोधत ॥१२४ ५८० ॥११८ ।।११६ राजस्या ब्रह्मणोंऽशेन मरीचिः कश्यपोऽभवत् । लामस्यास्तस्य चांशेन कालात्मा रुद्र उच्यते ॥ सात्त्विक्या पुरुषांशेन यज्ञे विष्णुरभूत्तदा ॥१२५ ये शक्तियाँ मनुष्य, राक्षस पिशाचादि सभी में एक-सी प्रविष्ट होती हैं, और इस प्रकार स्वयम्भू एक रूप र भिन्न-भिन्न रूपों में प्रतिष्ठित होता है । सत्व, रजस् एवं तमोगुणों में से एक-एक गुणवालो अपनी तीनों मूर्तियों द्वारा प्रजाओं को सम्मोहित करता है | उन तीनों में से जो एक की पूजा करता है यह तीनो की पूजा करता है। इस कारण से इन तीनों देवताओं में वस्तुतः कोई अन्तर नहीं है । और न इनमे एकत्व एवं पृथक्त्व आदि का भी तारतम्य है। इस प्रकार उनके एक होने का अथवा अनेक होने का भेद कौन जान सकता है | ११८ - १२०। यतः तीनों कालो मे गुण भेद के वश होकर वे सभी प्रजाओं की सृष्टिकर उनका पालन करते है, और स्वयमेव संहार भी करते हैं अतः एक ही कहे जाते है । अर्थात् वे स्वयम्भू ही एक बार रजोगुणमय हो प्रजाओं को सृष्टि करते हैं, सत्त्वगुण सम्पन्न हो पालन करते है ओर तमोगुणमय सम्पन्न हो संहार करते है, कोई दूसरा यह सब नहीं करता अतः एक कहे जाते हैं | १२१ | द्विजगण ! उस एक आदि देव को ही रुद्र, ब्रह्मा, इन्द्र, लोकपालगण, ऋषिवृन्द, दानव, नारायण आदि अनेक नामों से पुकारते है। उसकी प्रजापति (ब्रह्मा) की और विष्णु की मूर्ति प्रत्येक मन्वन्तर एवं प्रत्येक कल्प मे पुनः पुनः आवर्तित होती है। वह क्षेत्रज्ञ स्वम्भू अनुग्रह वश अपने तेज, यश, बुद्धि शास्त्रज्ञान, एवं पराक्रमादि गुणो से सम्पन्न होकर अपने तुल्य विविध प्रजाओं के रूप में उत्पन्न होता है, ऐसे जो लोग उत्पन्न होते है उन्हें सुनिये |१२२-१२४| रजोगुणमयी राजसी मूर्ति में ब्रह्मा के अंश से मरीचि और कश्यप की उत्पत्ति हुई | तमोगुणमय तामसी मूर्ति में उसी • नास्तीदमधं क. पुस्तके |