पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८१

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५६० वायुपुराणम् सुरूपा चैव मारीची कार्दमी च तथा स्वराट् | पथ्या व मानवी कन्या तिस्रो भार्यास्त्वथर्वणः || इत्येताऽङ्गिरसः पत्न्यस्तासु वक्ष्यामि संततिम् अथर्वणस्तु दायादास्तासु जाताः कुलोद्वहाः | उत्पन्ना महता चैव तपसा भावितात्मनाम् बृहस्पतिः सुरूपाया गौतमः सुषुवे स्वराट् | अवन्ध्यं वामदेवं च उतथ्य सुशिजं तथा धिष्णुः पुत्रस्तु पथ्यायां संवर्तश्चैव मानसः | विचित्तश्च तथा यस्य शरद्वांश्चाप्युतथ्यजः अशिजो दीर्घतमा बृहदुत्थो वामदेवजः । धिष्णोः पुत्रः सुधन्वान ऋषभश्च सुधन्वनः रथकारः स्मृता देवा ऋषयो ये परिश्रुताः । वृहस्पतेर्यवीयांसो विश्रुतैः सुमहायशाः अङ्गिरसस्तु संवर्तो देवानङ्गिरसः शृणु । बृहस्पतेर्यवीयांसो देवा ह्यङ्गिरसः स्मृताः औरसाङ्‌ङ्गिरसः पुत्राः सुरूपायां विजज्ञिरे । औदार्यायुदंनुर्दक्षो दर्भः प्राणस्तथैव च ॥ हविष्मांच हविष्णुच ऋतुः सत्यश्च ते दश अयस्यस्तु उतथ्यश्च वामदेवस्तथोसिजः | भारद्वाजाः शांकृतिका गार्ग्यकाण्वरथोतराः मुद्गला विष्णुवृद्धाश्च हरिता घायवस्तथा । तथा भाक्षा भरद्वाजा आर्षभाः किंभयात्तथा एते ह्यगिरसः पक्षा विज्ञेया दश पश्च च । ॠष्यन्तरेषु वै बाह्या बहवोऽगिरसः स्मृताः ॥६८ IEE ॥१०० ॥१०१ ।।१०२ ॥१०३ ॥१०४ ॥१०५ ॥१०६ ॥१०७ ॥१०८ । आङ्गिरस अथर्वा को मरीचि नन्दिनी सुरूपा, कदंम पुत्री स्वराद् तथा मनुकन्या पय्या नामक तीन स्त्रियाँ थी, उनमें होनेवाली सन्ततियों का विवरण वतला रहा हूँ, अथर्वा के वशोद्धारक उन उत्तराधिकारियो का, जो परम पूजनीय अंगिरा की परम तपस्या के फलस्वरूप उत्पन्न हुए थे, वर्णन कर रहा हूँ, सुरूपा मे बृहस्पति का जन्म हुआ, स्वराट् ने गौतम को जन्म दिया |९७-६६३। अंवन्ध्य, नामदेव, उशिज उतथ्य और धिष्ण ये पथ्या में उत्पन्न हुए, और संवर्त तथा विचित्त उसके मानस पुत्र हुए। उतथ्य के पुत्र शरद्वान हुए। उशिज के पुत्र दीर्घतमा तथा वामदेव के पुत्र वृहदुत्थ हुए । धिष्णु के पुत्र सुधन्वा और सुधन्वा का पुत्र ऋषय हुआ। और ऋषय के रथकार नामक देवगण तथा परम विख्यात ऋषिगण पुत्र रूप मे हुए । बृहस्पति के पुत्र महान यशस्वी एवं परम विख्यात भारद्वाज हुए |१००-१०३ | आङ्गिरस के संवर्त नामक जो पुत्र थे उनको सततियाँ देवगणों मे परिगणित है, उन आगिरस गोत्रीय देवताओं का विवरण सुनिये । बृहस्पति के छोटे भाई वे आंगिरस गोत्रीय देवगण माने जाते है । वे आंगिरस गोत्रीय देवगण सुरूपा के औरस पुत्र रूप में उत्पन्न हुए थे । उनकी संख्या दस है तथा उनके नाम औरस, आयु, दनु, दक्ष, दर्भ, प्राण, हविष्मात्, हविष्णु ऋतु और सत्य है । अयस्य, उत्तथ्य, वामदेव, भारद्वाज गोत्रीय शाकृतिक, गार्ग्य, काण्व, रथीतर, मुद्गल, विष्णुवृद्ध, हरित, वायच, भारद्वाज गोत्रीय भाक्ष, आर्षभ और किंभय -- ये पन्द्रह अंगिरा के गोत्रीय है, जो अन्यान्य ऋपियो के गोत्रो से विवाहादि सम्बन्धों में अंगीकार किये गये है | अंगिरा के गोन मे उत्पन्न होनेवालो की संख्या