पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पञ्चषष्टितमोऽध्यायः व्याधितः सोऽष्टमे मासि गर्मः क्रूरेण कर्मणा । च्यवनाच्च्यवनः सोऽथ चेतनस्तु प्रचेतसः ॥ प्राचेतस च्च्यवनक्रोधादध्वानं पुरुषादजः जनयामास पुत्रौ द्वौ सुकन्यायां च भार्गवः । आत्मवानं दधीचं च तावुभौ साधुसंमतौ सारस्वतः सरस्वत्यां दधीचाच्चोपपद्यते । रुची पत्नी महाभागा आत्मवानस्य नाहुषी तस्य तूर्वोॠषिर्जज्ञे ऊरू भित्वा महायशाः । और्वश्चाऽऽसीदृचीकस्तु दीप्ताग्निसदृशप्रभः जमदग्निर्ऋचीकस्य सत्यवत्यां व्यजायत । भृगोच चरुपर्यासे रौद्रवैष्णवयोस्तथा जमनाद्वैष्णवस्याग्नेर्जमदग्निरजायत । रेणुका जमदग्नेस्तु शक्क्रतुल्यपराक्रमम् ॥ ब्रह्मक्षत्रमयं रामं सुषुवेऽमिततेजसम् ५५६ शृणुताङ्गिरसो वंशमग्नेः पुत्रस्य धीमतः । यस्यान्ववाये संभूता भारद्वाजा: सगौतमाः || देवाश्चाङ्गिरसो मुख्यास्त्विषुमन्तो महौजसः ॥८ 1180 ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ और्वस्याऽऽसीत्पुत्रशतं जमदग्निपुरोगमम् । तेषां पुत्रसहस्राणि भार्गवाणां परस्परात् ऋष्यन्तरेषु वै बाह्या बहवो भार्गवाः स्मृताः । वत्सो विश्वोऽश्विषेणश्च पाण्डः पथ्यः सशौनकः ॥ गोत्रेण सप्तमा होते पक्षा ज्ञेयास्तु भार्गवाः ॥६६ ॥६७ को मास में व्याधिग्रस्त होकर गिर पड़ा, अतः च्यवन (गिर जाने के कारण उसका च्यवन नाम पड़ा और प्रचेतस से चेतन हुआ । प्राचेतस च्यवन के क्रोध से पुरुषदाज ने अध्वाको - (?) उन भृगु पुत्र ने सुकन्या नामक अपनी धर्मपत्नी में सत्पुरुषों द्वारा परम सम्माननीय आत्मवान् और दघीच नामक दो पुत्रों को उत्पन्न किया । सरस्वती मे दधीच के संयोग से सारस्वत नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई । नहुष की पुत्री महाभाग्य- शालिनी रुची आत्मवान् की पत्नी थी १८८-९१ | आत्मवान् के ऋषि उरु नामक महायशस्वी पुत्र जंघाओं फाड़कर उत्पन्न हुआ। उस उर्व का पुत्र ऋचीक हुआ जो प्रज्वलित अग्नि के समान परम तेजस्वी था । ऋचीक मुनि की सत्यवती नामक स्त्री में जमदग्नि ऋषि उत्पन्न हुए । भृगु कृत रुद्र ओर विष्णु के चरु में विपर्यय हो जाने के कारण वैष्णव अग्नि के रुद्र अंश के भक्षण के कारण जमदग्नि ऋषि उत्पन्न हुए | जमदग्नि के संयोग से रेणुका ने इन्द्र के समान पराक्रमी, परम तेजस्वी ब्रह्मबल से संयुक्त परशुराम को उत्पन्न किया | उर्व के पुत्र ऋचीक के एक सो पुत्र थे, जिनमें जमदग्नि सबसे बड़े थे । उन सौ पुत्रों के एक सहस्र पुत्र हुए । उन सभी भृगुवंशीय ऋषियों के वंशज परस्पर अन्यान्य ऋषियों के वंशजों से वाह्य विवाहादि कार्यों में योग्य माने गये हैं। वत्स, विश्व, अश्विपेण, पाण्ड, पथ्य, और शौनक - इन सात गोत्रों मे भार्गवगण विभक्त माने जाते हैं । ९२-९६ । अव अग्नि के पुत्र, परम बुद्धिमान् अंगिरा के वंश का वृत्तान्त सुनिये, जिसके गोत्र में परम तेजस्वी भारद्वाज, गौतम, एवं इषुमान् नामक मुख्य देवगण उत्पन्न हुए हैं ।