पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५७८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पञ्चषष्टितमोsध्यायः ततोऽनवील्लोकगुरुः परमित्यविचारयन् । एवं देवा विनिश्चित्य मया सृष्टा न संशयः ॥ भवतां वंशसंभूताः पुनरेते महर्षयः तेषां भृगो: कोर्तयिष्ये वंशं पूर्वं महात्मनः । विस्तरेणाऽऽनुपूर्व्या च प्रथमस्य प्रजापतेः भार्ये भृगोरप्रतिमे उत्तमेऽभिजने शुभे । हिरण्यकशिपोः कन्या दिब्या नाम परिश्रुता || पुलोम्नश्चापि पौलोमी दुहिता वरवणनी ५५७ ॥७१ ॥७२ ॥७३ ॥७४ भृगोस्त्वजनयद्दिव्या काव्यं वेदविदां वरम् | देवासुराणामाचार्यं शुक्रं कविसुतं ग्रहम् स शुक्रवोशना ख्यातः स्मृतः काव्योऽपि नामतः । पितॄणां मानसी कन्या सोमपानां यशस्विनी ॥ शुक्रस्य भार्या गोनाम विजज्ञे चतुरः सुतान् ब्राह्मण तेजसा युक्तः स जातो ब्रह्मवित्तमः | तस्यामेव तु चत्वारः पुत्राः शुक्रस्य जज्ञिरे त्वष्टा नरूत्री द्वावेतौ शण्डासक व तावुभौ । ते तदाऽऽदित्यसंकाशा ब्रह्मकल्पाः प्रभावतः रज्जनः पृथुरश्मिश्च विद्वान्यस्य बृद्गिराः । वरूत्रिणः सता होते ब्रह्मिष्ठाः सुरयाजकाः इज्याधर्मविनाशार्थं मनुमेत्यास्ययोजयन् । निरस्यमानं वै धर्मं दृष्ट्वेन्द्रो मनुसनवीत् ॥७५ ॥७६ ३१७७ ॥७८ ॥७६ अपने रूप में (बिना स्त्री के) प्रजाओं का विस्तार तो कर नहीं सकते, इनकी प्रजाएँ युगारम्भ से लेकर युगान्त तक स्थित रहनेवाली होगी । ऐसी वातें सुनकर सोकपितामह ब्रह्मा ने बिना कुछ विशेष विचार किये ही उत्तर दिया, निस्संदेह इन्हीं सव वातों का निश्चय करके मैंने पहले देवताओं की सृष्टि की है । ये महर्पिगण जो आप लोगों के वंश में उत्पन्न होनेवाले हैं, उनमे से सर्वप्रथम महात्मा भृगु के वंश का वर्णन विस्तारपूर्वक क्रमश. कर रहा हूं. जो कि प्रथम प्रजापति हैं। उन महात्मा भृगु की दो सत्कुलोत्पन्न कल्याणी स्त्रियाँ थी, जिनमें एक हिरण्यकशिपु की कन्या थी जिसका दिव्या नाम विख्यात है, दूसरी परमसुन्दरी प्रलोम की कन्या थी, जिसका पौलोमी नाम था ।६९-७३ | दिव्या ने भृगु के संयोग से वेदज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ, देवताओं एवं असुरों के आचार्य, कविपुत्र, सुप्रसिद्ध ग्रह शुक्र को उत्पन्न किया। वे शुक्र उशना एवं काव्य नाम से भी विख्यात है | शुक्र की पत्नी एवं सोम पान करनेवाले पितरों की यशस्विनी गो नामक कन्या ने चार पुत्रों को उत्पन्न किया |७४ ७६। वे शुक्राचार्य ब्रह्मतेज से समलंकृत एवं ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ थे। उस पत्नी में शुक्र के चार पुत्र उत्पन्न हुए, जो त्वष्टा और वरुत्री तथा शण्ड एवं अमर्क के नाम से विख्यात है। शुक्र के प्रभाव से वे पुत्र ब्रह्म के समान तेजस्वी तथा आदित्य के समान थे । तिनमें से वरुत्री के रज्जन, पृथुरश्मि और विद्वान् बृहद्गिरा नामक ब्रह्मपरायण पुत्र हुए, जो सभी देवताओं के पुरोहित हुए। एक बार यज्ञ एवं धर्म के विनाश के लिये इन शुक्रपुत्रों ने मनु से अपने तर्कपूर्ण मतों को निवेदित किया । धर्म को नष्ट होते देख इन्द्र ने मनु