पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५७७

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५५६ वायुपुराणम् ॥६० ॥६२ ६३ ॥६४ दारुणा हि रुते मासा निर्यासा: पक्षसंधयः । वत्सरा ये त्वहोरात्राः पित्रं (त्र्यं) ज्योतिश्च दारुणम् ॥५६ रौद्रं लोहितमित्याहुर्लोहितं कनकं स्मृतम् । तन्मैत्रमिति विज्ञयं धूसश्च पशवः स्मृताः येऽचिषस्तस्य ते रुद्रास्तथाऽऽदित्याः समुद्भवाः । अङ्गारेभ्यः समुत्पन्ना ज्योतिषो दिव्यमानुषाः ॥६१ आविमानस्य लोकस्य ब्रह्मा ब्रह्मसमुद्भवः । सर्वकामदमित्याहुस्तत्र कन्यामुदाहरन् बह्मा सुरगुरुस्तत्र त्रिदशैः संप्रसीदति । इमे वै जनयिष्यन्ति प्रजाः सर्वाः प्रजेश्वराः सर्वे प्रजानां पतयः सर्वे चापि तपस्विनः | तत्प्रसादादिमांल्लोकान्धारयेयुरिमाः क्रियाः द्वंद्वं संवर्धयामास तव तेजो विवर्धनम् । देवेषु वेदविद्वांसः सर्वे राजर्षयस्तथा वेदमन्त्रपराः सर्वे प्रजापतिगुणोद्भवाः । अनन्तं ब्रह्म सत्यं च तपश्च परमं भुवि सर्वे हि वयमेते च तथैव प्रसवः प्रभो । ब्रह्म च ब्राह्मणाश्चैव लोकायचैव चराचराः मरीचिमादितः कृत्वा देवाश्च ऋषिभिः सह | अपत्यानोह संचिन्त्य तेऽपत्यं कामयामहे तस्मिन्यज्ञे महाभागा देवाश्च ऋषिभिः सह । एतद्वंशसमुद्भूताः स्थानकालाभिमानिनः न च तेनैव रूपेण स्थापयेयुरिमाः प्रजाः | युगादिनिधनाश्चैव स्थापयेयुरिमाः प्रजाः ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६ ॥७० पितरगणों की दारुण ज्योति का प्रादुर्भाव हुआ । रौद्र को लोहित कहा जाता है, लोहित को कनक नाम से भी स्मरण किया गया है, उसी को मैत्र भी जानना चाहिये, घूम पशु माने गये हैं।५९-६०। उसकी देह- द्युति से रुद्र तथा आदित्यगणो का समुद्भव हुआ । अङ्गारों से दिव्य एवं मानुषप ज्योतियो का उद्भव हुआ । इस प्रकार ब्रह्म से समुद्भूत भगवान् ब्रह्मा इस लोकसृष्टि के आदिमकर्ता एवं मूल पुरुष माने गये हैं । उनको सव मनोरथों का देनेवाला कहा जाता है। उस महायज्ञ के अवसर पर कन्या की बातचीत के सिलसिले में ऋषियों और ब्रह्मा से इस प्रकार वार्तालाप हुआ । मरीचि ऋषि को अगुआ बनाकर सभी ऋषियों एवं देवताओं ने एक साथ सुरश्रेष्ठ ब्रह्मा के पास जाकर इस तरह निवेदन किया, हे प्रभो ! प्रजापतिगण सभी प्रजाओ की सृष्टि का कार्य सम्पन्न करेंगे, आपकी कृपा से ये सभी प्रजापति तथा परम तपस्व ओर सभी लोको को धारण (पालन) करने मे समक्ष तथा क्रियानिष्ठ है |६१-६४/ तुम्हारे तेज की अभिवृद्धि करनेवाले द्वन्द्वात्मक भाव की वृद्धि हो गई | देवताओ में वेदों के जाननेवाले ये राजपिंगण, वैदिकमंत्र परायण एवं प्रजापति के समस्त गुणो से समलंकृत है | इस पृथ्वी तल पर एक ब्रह्म ही अनन्त, सत्य एवं परम तप साध्य है | ये और हम सभी तुम्हारी हो सन्ताने है, इस जगत् में ब्रह्म, ब्राह्मण एवं चराचर लोक सब कुछ तुमसे प्रादुर्भूत हुए है, हम सभी सन्तान की कामना करते हैं । ६५-६८ इस प्रकार उस महायज्ञ में महा- भाग्यशाली देवगणो ने ऋषियों के साथ ब्रह्मा से प्रार्थना की । इन्ही उपर्युक्त ऋषियो एवं देवताओ के वंश में स्थान एवं काल का निर्धारण करनेवाली सन्तानें उत्पन्न हुईं | उन लोगों ने फिर कहा, ये प्रजापतिगण इसी