पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५७४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पञ्चषष्टितमोऽध्यायः ॥३० ॥३१ आयुः सर्वत एवैते देवस्य यजतो मुखे । मूर्तिमन्तः स्वरूपाख्या वरुणस्य वपुर्भृतः स्वयंभुवस्तु ता दृष्ट्वा रेतः समपतद्भुवि । ब्रह्मर्षर्भावभूतस्य विधानाच्च न संशयः कृत्वा जुहाव स्रग्भ्यां च त्रवेण परिगृह्य च । आज्यवज्जुहु (ह) वांचक्रे मन्त्रवच्च पितामहः ॥३२ ततः स जनयामास भूतग्राम प्रजापतिः | तस्यार्वाकृतेजसस्तस्य यज्ञे लोकेषु तैजसम् ॥ तमसा भावव्याप्यत्वं तथा सत्त्वं तथा रजः ५५३ महादेवस्तथोद्भूतं दृष्ट्वा ब्रह्माणमब्रवीत् | मसैष पुत्रकामस्य दीक्षितस्य त्वयं प्रभोः ॥ विजज्ञेऽथ भृगुर्देवो मम पुत्रो भवत्वयम् ॥३३ ॥३४ सगुणात्तेजसो नित्यं आकाशे तमसि स्थितम् | तमसस्तेजसत्वाच्च सर्वभूतानि जज्ञिरे यदा तस्मिन्नजायन्त फाले पुत्रास्तु कर्मजाः । आज्यस्थाल्यामुपादाय स्वशुक्रं हुतवांश्च ह शुक्रे हुतेऽथ तस्मिस्तु प्रादुर्भूता महर्षयः । ज्वलन्तो वपुषा युक्ताः सप्त वै प्रसवैर्गुणैः हुते चाग्नौ सकृच्छुक्रे ज्वालाया निःसृतः कविः | हिरण्यगर्भस्तं दृष्ट्वा ज्वालां भित्त्वा विनिःसृतस् भृगुस्त्वमिति होवाच यत्मात्तस्मात्स वै भृगुः ॥३७ ॥३५ ॥३६ ॥३८ सब स्त्रियों को देख कर स्वयम्भू ब्रह्मा जी का वीर्य पृथ्वी पर स्खलित हो गया । ब्रह्मपि के भाव से प्रभावित निश्चित विधान के कारण पितामह ने पृथ्वी पर स्खलित अपने वीर्य को घृत की भाँति खुवा पर रख कर मन्त्रों का विधिवत् उच्चारण कर हवन कर दिया । प्रजापति ने इस प्रकार अनेक जीव-समूहों की सृष्टि की | लोक में परम तेजोमय, किन्तु पृथ्वी पर गिर पड़ने के कारण कुछ क्षीण तेज वाले उस वीर्य से सत्त्वगुण, जोगुण एवं तमोगुणमय सृष्टि उत्पन्न हुई । इन उपर्युक्त तीनो गुणों से सम्पन्न वह तेज आकाश मण्डल मे देदीप्यमान हुआ । तमोगुणमय तेजस्विता कारण सभी जीवसमूह उत्पन्न हुए ।३१-३४। जिस समय ब्रह्मा ने घृत के पात्र में अपने वीर्य को लेकर अग्नि मे हवन किया उस समय उनके कर्मज पुत्रो को उत्पत्ति हुई । अग्नि में वीर्य के हवन कर देने पर महर्षियों का प्रादुर्भाव हुआ, सातों ऋषियों के शरीर उज्ज्वल एवं देदीप्यमान थे, तथा बालकों के सभी गुण उनमें पाये जाते थे । पहली बार अग्नि में वीर्य के हवन करने पर लपटों से कवि (भृग) निकले। इस प्रकार ज्वाला का भेदन कर निकलते हुये कवि को देखकर हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने कहा, यत अग्नि ज्वाला से प्रकट होते समय तुमने 'भृगु' इस प्रकार का उच्चारण किया है, अतः तुम्हारा नाम भी भृगु हुआ |३५-३७ । इस प्रकार अग्नि ज्वाला का भेदन कर प्रादुर्भूत होने वाले उस ब्रह्मपि को देखकर महादेव ने कहा, प्रभो ! पुत्र प्राप्ति की कामना से मै दीक्षा ग्रहण कर इस यज्ञ को कर रहा था, ने फा०-७०