पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६४

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त्रिषष्टितमोऽध्यायः स इमां दग्धभूयिष्ठां युष्मत्तेजोमयेन वै । अग्निनाऽग्निसमो भूयः प्रजाः संवर्धयिष्यसि ततः सोमस्य वचनाज्जगृहुस्ते प्रचेतसः । संहत्य कोपं वृक्षेभ्यः पत्नों धर्मेण मारिषाम् मारिषायां ततस्ते वै मनसा गर्भमादधुः । दशभ्यस्तु प्रचेतोभ्यो मारिषायां प्रजापतिः दक्षो जज्ञे महातेजाः सोमस्यांशेन वीर्यवात् । असृजन्मनसा चाऽऽदौ प्रजा दक्षो न मैथुनात् अचरांश्च चरांश्चैव द्विपदोऽथ चतुष्पदः । विसृज्य मनसा दक्षः पश्चादसृजत स्त्रियः ददौ स दश धर्माय कश्यपाय त्रयोदश । कालस्य नयने युक्ताः सप्तविंशतिमिन्दवे एभ्यो दत्त्वा ततोऽन्या वै चतत्त्रोऽरिष्टनेमिने | द्वै चैव बाहुपुत्राय द्वे चैवाङ्गिरसे तथा ॥ कन्यामेकां कृशाश्वाय तेभ्योऽपत्यं निबोधत अन्तरं चाक्षुषस्थात्र मनोः षष्ठं तु होयते । मनोवैवस्वतस्यापि सप्तमस्य प्रजापतेः तासु देवाः खगा गावो नागा दितिजदानवाः । गन्धर्वाप्सरसश्चैव जज्ञिरेऽन्याश्च जातयः ऋषय ऊचुः ततः प्रभृति लोकेऽस्मिन्प्रजा मैथुनसंभवाः । संकल्पाद्दर्शनात्स्पर्शात्पूर्वेषां सृष्टिरुच्यते ५४३ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ तेजोबल के कारण एवं अग्नि द्वारा अग्नि के समान परम तेजस्वी हो वह इस जलकर नष्ट हुई वसुधा का तथा सारी प्रजाओं का पालन पोषण करेगा |३३ ३६ | चन्द्रमा के ऐसा करने पर प्रचेताओं ने वृक्षों पर से अपना क्रोध हटा लिया और धर्मपूर्वक मारिषा को पत्नी रूप में वरण किया । तदनन्तर उन सबों ने मानसिक संकल्प से मारिषा में गर्भाधान किया। उन दस प्रचेताओं के अंश से मारिषा में दक्ष नामक प्रजापति उत्पन्न हुए, जो चन्द्रमा के अंश के कारण परम पराक्रमी तथा महान तेजस्वी थे । प्राचीन काल मे सर्वप्रथम उन दक्ष ने केवल मानसिक संकल्प से प्रजा सृष्टि की, स्त्री-पुरुष सम्भोग द्वारा नहीं | ३७-३९१ उन दक्ष ने पहले अचरो को, घरों को, द्विपदों ( मनुष्यों ) को तथा चतुष्पदों को मानसिक संकल्प द्वारा उत्पन्न कर तदनन्तर स्त्रियों की सृष्टि की। उनमें से दस धर्म को, तेरह कश्यप को, तथा समय के विभाजन में नियुक्त सत्ताईस कन्याओं को चन्द्रमा को दिया। इन सब को देने के बाद चार कन्याओं को अरिष्टनेमि को, दो बाहुपुत्र को, दो अङ्गिरा को तथा एक कृशाश्व को दिया। अब उनके पुत्र-पौत्रादिकों का विवरण सुनिये ॥४०-४२॥ इस अवधि में छठवां चाक्षुष नामक मन्वन्तर व्यतीत हो गया और सातवें प्रजापति वैवस्वत मनु का भी कार्यकाल समाप्त हुआ | उन दक्ष की कन्याओं में देवता, पक्षी, नाग, दंत्य दानव, गन्धर्व, अप्सरायें, एवं अन्यान्य जातियाँ उत्पन्न हुईं । इसके उपरान्त इस पृथ्वी लोक में प्रजाएँ सम्भोग के द्वारा उत्पन्न होने लगी । उनके पूर्व उत्पन्न होने वालों को सृष्टि संकल्प, दर्शन एवं स्पर्श से होती कही जाती है।४३-४५॥