पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६३

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५४२ वायुपुराणम् तपश्चरत्सु पृथिवी प्रचेतःसु महीरुहाः | अरक्ष्यमाणा: खं वध्रुर्वभूवाथ प्रजाक्षयः प्रत्याहते तदा तस्मश्चाक्षुषस्यान्तरे मनोः | नाशफन्मारुतो वातुं वृतं समभवद्रुमैः दश वर्षसहस्रणि न शेफुश्चेष्टितुं प्रजाः तदुपश्रुत्य तपता सर्वे युक्ताः प्रचेतसः । मुखेभ्यो वायुर्माग्न व ससृजुर्जातमन्यवः उन्मूलानथ तान्वृक्षान्कृत्वा वायुरशोषयत् । तानग्निरदहद्घोर एवमासीद्रुमक्षयः द्रुमक्षयमथो बुद्ध्वा किंचिच्छेषेषु शाखिषु | उपगम्याब्रवीदेतान्राजा सोमः प्रचेतसः दृष्ट्वा प्रयोजनं सर्वं लोकसंतानकारणात् । कोपं त्यजत राजानः सर्व प्राचीनर्वाहपः वृक्षाः क्षित्यां जनिष्यन्ति शाम्येतामग्निमारुती | रत्नभूता तु कम्येयं वृक्षाणां वरवणनी भविष्यं जानता होषा मया गोभिविवधिता | मारिषा नाम नाम्नैषा वृक्षैरेव विनिमिता ॥ भार्या भवतु वो ह्येषा सोमगर्भनिर्वाधिता युष्माकं तेजसोऽर्धेन मम चार्धेन तेजसः । अस्यामुत्पत्स्यते विद्वान्दक्षो नाम प्रजापतिः ।।२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ 4 ॥३२ ॥३४ ॥३५ तथा काट छांट के वृक्षों ने समस्त पृथ्वीमण्डल पर बढ़ बढ़कर आकाश तक छेक लिया, जिससे प्रजाओ का विनाश होने लगा। उस चाक्षुष मन्वन्तर में इस प्रकार प्रजाओं के ऊपर घोर विपति ला गई, सारा आकाशमण्डल वृक्षों से घिर उठा और दस सहस्र वर्ष तक प्रजाएं निश्चेष्ट पड़ी रही अर्थात् उन चेतरतीव बढ़े हुए वृक्षों के काटने छाँटने का साहस उन्हें नही हुआ । तपोवल द्वारा प्रजाओ की इस घोर विपत्ति को चर्चा सुनकर सभी प्रचेताओं ने अति क्रुद्ध होकर अपने-अपने मुख से एक ही साथ वायु और अग्नि को छोड़ा |२७-२६। वायु ने उन सभी वृक्षों को उखाड़ कर सुखा दिया और तब अग्नि ने उन सब को भस्म कर दिया - इस प्रकार उन वृक्षों का विनाश हो गया। उन बढ़े हुये वृक्षों के विनाश हो जाने पर जब कहीं कही थोड़ी संख्या में कुछ वृक्ष शेप रह गये तव उन प्रचेताओं के समीप जाकर राजा सोम ने कहा - "प्रचेता गण ! लोगो को उत्पन्न होने वाली संततियों के नित्य आने वाले सभी प्रयोजनों को देखकर आप लोग नोध छोड़ दे, क्योंकि आप सव राजा है और वहिस् के पुत्र है | ३०-३२॥ पृथ्वी पर शेष बचे हुये ये वृक्ष नये वृक्षों को उत्पन्न करेंगे। अतः अग्नि और वायु को अब आप लोग शान्त कर दें। यह परम सुन्दर दिखाई पड़ने वाली रत्नभूत कम्या वृक्षों की है, भविष्य में घटित होनेवाली घटनाओं को जानकर मैंने अपनी किरणो द्वारा इसको बढ़ाया है, इसका नाम मारिषा है, वृक्षो ने हो इसको उत्पन्न किया है | सोम के (मेरे) गर्भ मे बढ़ने वाली यह सुन्दरी कन्या तुम सबो की स्त्री होगी। तुम लोगों के आधे तेज से तथा मेरे आधे तेज से इसमे परम विद्वान् दक्ष नामक प्रजापति उत्पन्न होगा | तुम सबों के