पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५५१

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५३० वायुपुराणम् पालयिष्ये प्रजाश्चेति त्वया पूर्व प्रतिश्रुतम् | तांस्तथा वादिनः सर्वान्ब्रह्मपनब्रवीत्तदा स प्रहस्य तु दुर्बुद्धिरिदं वचनकोविदः । स्रष्टा धर्मस्य कश्चान्यः श्रोतव्यं कस्य नै मया वीर्यश्रुततपः सत्यैर्मया वा कः ससो भुवि । महात्मानमनूनं सां यूयं जानीत तत्त्वतः प्रभवः सर्वलोकानां धर्माणां च विशेषतः । इच्छन्दहेयं पृथिवीं प्लावयेयं जलेन वा ॥ सृजेयं वा प्रसेगं वा नात्र फार्या विचारणा ॥१२० ॥१२१. ॥१२२ यदा न शक्यते स्तम्भान्मानाच्च भृशमोहितः | अनुनेतुं नृपो वेनस्ततः क्रुद्धा महर्षयः निगृह्य तं महाबाहुं विस्फुरन्तं यथाऽनलम् । ततोऽस्य वालहस्तं ते ममन्थुभृशकोपिताः तस्मात्प्रमथ्यमानाद्वै जज्ञे पूर्वसभिश्रुतः | ह्रस्वोऽतिमात्रं पुरुषः कृष्णश्चापि तथा विजाः स भीतः प्राञ्जलिश्चैव स्थितयान्व्याकुलेन्द्रियः | तमार्तं विह्वलं दृष्ट्वा निषोदेत्यब्रुवन्किल ॥१२४ निषादवंशकर्ताऽसौ बभूवानन्तविक्रमः | धीवरानसृजत्सोऽपि वेनकल्मषसंभवान् ॥१२३ ॥१२५ ये चान्ये विन्ध्यनिलयास्तुम्बुरां स्तुवराः खसाः । अधर्मरुचयश्चापि संभूता बेनकल्मषात् ॥१२६ ॥११७ ॥११८ ॥ ११९ धर्मं नही है, तुम निश्चय यह मान लो कि अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त उत्पन्न हुए हो। तुम पहिले हो प्रतिज्ञा कर चुके हो कि 'मैं प्रजाओं का पालन करूंगा ।११३-११६३। इस प्रकार की बाते करनेवाले सभी ब्रह्मपियों से उस समय उस परम दुर्बुद्धि एवं बातें करने मे निपुण वेन ने हँस कर कहा, धर्म का बनाने वाला मेरे सिवा इस जगत् मे दूसरा कौन है ? में किसकी बाते सुनूं । अथवा इस ससार मे पराक्रम, शास्त्रज्ञान, तपस्या तथा सैन्य आदि साधनों में मेरे समान भला इस पृथ्वी पर कौन है । तुम लोग मुझे यथार्थत: सभी साधनों से परिपूर्ण तथा महात्मा जानो । मुझे सभी लोगों का तथा विशेषकर सभी प्रकार के धर्मों का उत्पत्ति-कर्ता समझो। मैं अपनी इच्छा मात्र से इस सारी पृथ्वी को चाहूँ तो जला दूँ, या इसकी अभिनव सृष्टि कर दूँ या निगल जाऊँ - इसमें तनिक भी सन्देह मत करो । ११७-१२०। इस प्रकार जब अनेक वार के समझाने बुझाने पर भी, दम्भ, एवं अभिमान के कारण मोहित वेन ठीक मार्ग पर नहीं लाया जा सका तब क्रुद्ध होकर महपियों ने अग्नि की लपटों की तरह फडकते हुए उस महाबाहु को पकड़कर उसके वाये हाथ का अत्यन्त कुपित हो मन्थन किया | हे द्विजगण ! मन्थन करते समय उसके बाएँ हाथ से एक अति अल्पकाय, कृष्णवर्गं एवं दीन-हीन चेष्टावाला पुरुष पहिले उत्पन्न हुआ । अति भयभीत दशा मे वह हाथ जोड़े हुए स्थित था सभी इन्द्रियां व्याकुल थी। उसे इस प्रकार आर्त दशा में देख मुनियों ने कहा निपीद, बैठ जामो।' फलस्वरूप अनन्त विक्रम सम्पन्न वह पुरुष निषाद वंश का कर्त्ता हुआ और बेन के पापों से उत्पन्न होनेवाले धीवरो को उत्पन्न किया |१२१-१२५। जो विन्ध्यपर्वत पर निवास करनेवाले, तुम्बुर, खस, स्तुवर जाति वाले अधर्मी लोग है, उसी वेन के पाप से उत्पन्न हुए हैं । तदनन्तर पुन: महर्षियो ने वेन के दाहिने हाथ