पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५५०

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द्विषष्टितमोऽध्यायः यश्चेमं श्रावयेन्मर्त्यः पृथोवैन्यस्य संभवम् | ब्राह्मणेभ्यो नमस्कृत्य न स शोचेत्कृताकृतम् ॥ गोप्ता धर्मस्य राजाऽसौ बभूवात्रिसमः प्रभुः अत्रिवंशसमुत्पन्नो ह्यङ्गो नाम प्रजापतिः । यस्य पुत्रो भवद्वेनो नात्यर्थं धार्मिकस्तथा जातो मृत्युसुतायां वै सुनोथायां प्रजापतिः । स मातामहदोषेण वेनः फालात्मजात्मजः स धर्मं पृष्ठतः कृत्वा कामाल्लोभे ह्यवर्तत । स्थापनं स्थापयामास धर्मोपेतं स पार्थिवः वेदशास्त्राण्यतिक्रम्य ह्यधर्मे निरतोऽभवत् । निःस्वाध्यायवषट्काराः प्रजास्तस्मिन्प्रशासति ॥ आसन्नं च पपुः सोमं हुतं यज्ञेषु देवताः न यष्टव्यं न होतव्यमिति तस्य प्रजापतेः । आसीत्प्रतिज्ञा क्रूरेयं विनाशे प्रत्युपस्थिते अहमिज्यश्च पूज्यश्च सर्वयज्ञे द्विजातिभिः | मयि यज्ञो विधातव्यो मयि होतव्यमित्यपि तमतिकान्तमर्यादमाददानमसांप्रतम् । ऊचुर्महर्षयः सर्वे मरीचिप्रमुखास्तथा वयं दीक्षां प्रवक्ष्यामः संवत्सरशतान्बहून् । माऽधर्मं वेन कार्षोस्त्वं नैष धर्मः सनातनः ॥ निधने च प्रसूतोऽसि प्रजापतिरसंशयः ५२६ ॥१०८ ॥१०६ ॥११० ॥१११ " ॥११२ ॥११३ ॥११४ ॥११५ ॥११६ उसे अपने कृताकृत ( पुण्य पाप अथवा जो कुछ किया है और जो कुछ नही किया है । ) का शोच नहीं करना पड़ता । अत्रि के समान परमप्रभावशाली वह राजा धर्म का सर्वतोभावेन रक्षक तथा परमऐश्वर्यशाली था ।१०५-१०८। महर्षि अत्रि के वंश मे उत्पन्न अंग नामक एक प्रजापति हुए, जिसका पुत्र वेन हुआ | वेन परम धार्मिक राजा नही था । वेन मृत्यु की पुत्री सुनीधा मे उत्पन्न हुआ था अतः अपने नाना के दोषों के कारण वह क्रूर प्रकृति का था । धर्म को पीछे रखकर कामनाओं से घिरकर वह लोभी हो गया और धर्म विरुद्ध मतों की उसने स्थापना की। वेदशास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन कर अधर्म में रत हो गया । उस विधर्मी राजा के शासनकाल मे प्रजाएं स्वाध्याय एवं वपट्कार से विहीन हो गईं । देवता यज्ञों में होमे गये हवनीय द्रव्यों का भक्षण एवं सोम रस का पान करने को तरस उठे |१०६-११२। उस प्रजापति वेन के राजत्वकाल में विनाश का अवसर उपस्थित होने पर यह क्रूर प्रतिज्ञा हुई कि कोई भी प्रजा न तो यज्ञ कर सकती है — न हवन कर सकती है । यह भी प्रतिज्ञा उसकी थी कि ब्राह्मण लोग सभी प्रकार के यज्ञों में एकमात्र मेरी पूजा करें, मेरा सम्मान करें, मेरे ही उद्देश्य से यज्ञों की क्रियाएँ सम्पन्न करें, मेरे ही उद्देश्य से हवनादि करें। इस प्रकार प्राचीन मर्यादा के अतिक्रमण करनेवाले अनुचित ढंग से पूजा आदि ग्रहण करनेवाले अत्याचारी वैन से मरीचि आदि प्रमुख महर्षियों ने कहा – हे वेन ! हम लोग अनेक सौ वर्षों तक तुम्हें धर्म का उपदेश तथा दोक्षा देंगे अतः तुम अब अधर्म मत करो, जो तुम करते हो वह सनातन फा० - ६७