पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५४२

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द्विषष्टितमोऽध्यायः अजश्च परंशुश्चैव दिव्यों दिव्यौषधिनयः | देवानुजश्चाप्रतिमो महोत्साहौशिजस्तयां विनीतश्च सुकेतुश्च सुमित्रः सुंबलः शुचिः । औत्तमस्य मनोः पुत्रास्त्रयोदश सहात्मनः ॥ एते प्रणेतारस्तृतीयं चैतदन्तरम् औत्तमो परिसंख्यातः सर्गः स्वारोचिषेण तु | विस्तरेणाऽऽनुपूर्व्या चं तामसांस्तान्निबोधतं चतुर्थे त्वथ पर्याये तामसस्थान्तरे मनोः । [* सत्याः स्वरूपाः सुधियो हरयश्चतुरो गणाः पुलस्त्यपुत्रस्य सुतांस्तांमसस्यान्तरे मनोः ] | गणस्तु तेषां देवानामेकैकः पञ्चविशकः इन्द्रियाणां शतं यद्धि मुनयः प्रतिजानते | सत्यप्राणास्तु शीर्षण्यास्तमश्चैवाष्टमस्तथा ॥ इन्द्रियाणि तदा देवा मनोस्तस्यान्तरे स्मृताः तेषां च प्रभुदेवांनां शिविरिन्द्रः प्रतापवान् । सप्तर्षयोऽन्तरे चैव तान्निबोधत सत्तमाः काव्यो हर्षस्तथा चैव काश्यपः पृथुरेव च । आत्रेयश्चाग्निरित्येव ज्योतिर्धामा च भार्गवः पौलहों वनपोठश्च गोत्रवासिष्ठ एव च । चैत्रस्तथाऽपि पौलस्त्य ऋषयस्तामसेऽन्तरे जनुघण्डस्तथा शान्तिर्नरः ख्यातिर्भयस्तथा । प्रियभृत्यो ह्यवक्षिश्च पृष्ठलोढो दृढोद्यतः ॥ ऋतश्च ऋबन्धुश्च तांप्रसस्य मनोः सुताः ५२१ ॥३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ दिव्य, दिव्यौपघि, नय अनुपम वीर देवानुज, महोत्साह ओशिज, विनीत, सुकेतु, सुमित्र, सुबल, और शुचि - ये तेरह महात्मा औत्तम मनु के पुत्र कहे गये है, जो क्षत्रियवंश की वृद्धि करने वाले थे – यह तृतीय मन्वन्तर का संक्षिप्त विवरण है । स्वरोचिष मनु की कार्यावधि में जिस प्रकार सृष्टिविस्तार हुआ था उसी प्रकारं औत्तमं मनु को सृष्टि का भी विस्तार हुआ कहा गया है। अब इसके उपरान्त तामस मनु की सृष्टि का विवरण विस्तारपूर्वक क्रमशः सुनिये । चतुर्थ तामस नामक मन्वन्तर में सत्य, स्वरूप, सुधी और हरि, इन चार नामों वाले देवगण थे। इनमे से एक-एक गण मे पच्चीस देवता थे |३४-३८। इस तामस मनु की कार्यावधि मे पुलस्त्य पुत्र के पुत्रों का प्रादुर्भाव हुआा था | सत्यप्राण, परम श्रेष्ठ मुनिगण जिन एक सौ इन्द्रियों को तथा आठवे तमं को स्वीकार करते है, उनमें से वे हो इन्द्रिय समूह उस मन्वन्तर के देवगण स्मरण किये गये है । और जो उनका प्रभु प्रतापंशाली शिवि था वही उस मन्वन्तर का इन्द्र था । हे सत्तम ! इसके अनन्तर उस मन्वन्तर के सप्त ऋपियों को मुनिये १३६-४० । कवि के पुत्र हर्ष, कश्यप के पुत्र पृथु, अत्रि के पुत्र अग्नि, भृगुं के पुत्र ज्योतिर्धामां, पुलंह के पुत्र वनंपीठ, गोत्र वासिष्ठ और पुलस्त्यं के पुत्र चैत्र – ये तामस मन्वन्तर के सात ऋषि है । हे ऋषिगण ! जनघण्ट, शान्ति, नर, ख्याति, भय, प्रियभृत्य, अविक्ष, दृढ और उद्यमशील

  • धंनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. घ. पुस्तक योर्नास्ति ।

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