पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५१७

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४६६ वायुपुराणम् तस्य शिष्यास्तु चत्वारः केतवो, दालकिस्तथा । * धर्मशर्मा देवशर्मा सर्वे व्रतधरा द्विजाः शाकल्ये तु मृते सर्वे ब्रह्मघ्नास्ते बभूविरे | तदा चिन्तां परां प्राप्य गतास्ते ब्रह्मणोऽन्तिकम् ताज्ञात्वा चेतता ब्रह्मा प्रेषितः पवने पुरे । तत्र गच्छत यूयं वः सद्यः पापं प्रणश्यति द्वादशार्क नमस्कृत्य तथा वै वालुकेश्वरम् । एकादश तथा रुद्रान्वायुपुत्रं विशेषतः ॥ कुण्डे चतुष्टये स्नात्वा ब्रह्महत्यां तरिष्यथ सर्वे शीघ्रतरा भूत्वा तत्पुरं ससुपागतः । स्नातं कृतं विधानेन देवानां दर्शनं कृतम् उत्तरेश्वरं नमस्कृत्य वाडवानां प्रसादतः । सर्वे पापविनिर्मुक्ता गतास्ते सूर्यमण्डलम् तदा प्रभृति तत्तार्थं जातं पातकनाशम् । वायोः पुरं पवित्रं च वायुना निर्मितं पुरा अञ्जनीगर्भसंभूतो हनुमान्पवनात्मजः । यदा जातो महादेव हनुमान्सत्यविक्रमः ! तदैव निर्मितं तीर्थ वायुना ब्रह्मयोलिना, उर्जा जातास्तु ये शूद्रा ब्राह्मणानां निवेदिताः । वृत्त्यर्थ ब्रह्मयज्ञार्थ करस्तेषु कृतो महान् i ॥६६ ॥६७. ॥६८ ॥६६ ॥७० ॥७१ ।७२ + ॥७३ ।।७४ था और फिर निरुक्त का प्रणयन किया, जो उनकी चौथी रचना थी। उनके केतव, दालकि, धर्म-शर्मा और देवशर्मा नामक चार द्विज शिष्य थे, जो सव के सब तपस्वी एवं विद्याव्रनी थे ।६५-६६। शाकल्य की मृत्यु के उपगन्त सभी ऋषियो को ब्रह्महत्या का पाप लगा, जिससे अति चिन्तित होकर वे ब्रह्मा के समीप गये । मन से ही उन सवों की अभिलापाओं को समझकर ब्रह्मा ने उन्हे पचनपुर को भेज दिया और कहा तुम लोग वहाँ जाओ, वहीं जाने से शीघ्र ही तुम सबो का पाप नष्ट हो जायगा । वहाँ पर वारहों सूर्य, वालुकेश्वर, ग्यारह रुद्र, विशेषतया वायुपुत्र को नमस्कार करके तथा चारों कुण्डों मे स्नान कर ब्रह्महत्या से तुम लोग मुक्त हो जायेगे । ब्रह्मा को बाते सुन ऋषिगण वायुपुर के लिये प्रस्थित हुये और वहाँ जाकर उन्होंने विधिपूर्वक स्नान एवं देवताओ के दर्शन किये। वाडवो की कृपा से उत्तरेश्वर को नमस्कार करके वे सभी मुक्त हो गये और सूर्यमण्डल को चले गये । तभी से वह वायुपुर नामक पावन तीर्थ पापों का विनाश करने वाला हो गया, जिसका पूर्वकाल में वायु ने निर्माण किया था । जिस समय अञ्जनी के गर्भ से उत्पन्न होनेवाले पवनपुत्र हनूमान्, जिनका पराक्रम कभी मिथ्या (व्यर्थ ) नही होता, उत्पन्न हुये थे, उसी समय ब्रह्मयोनि वायु ने उस पावन तीर्थ का निर्माण किया था ।६७-७३। पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले, ब्राह्मणों के सेवक जो शुद्रगण उस पुर हुए थे, उनके ऊपर ब्राह्मणो ने अपने जीवन निर्वाह तथा ब्रह्मयज्ञ को सम्पन्न करने के लिये महान् कर में उत्पन्न

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ग. ड. पुस्तकेयोर्नास्ति ।