पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५१६

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षष्टितमोsध्याय: । ततः समभवद्वादस्तयोर्ब्रह्मविदोर्महान् ४६५ ब्रूहीदानीं मयोद्दिष्टान्कामप्रश्नान्यथार्थतः सायं] प्रश्नसह तु शाकल्यस्तपचूचुदत् । याज्ञवल्क्योऽब्रवीत्सर्वानृषीणां शृण्षतां तदा शाकल्ये चापि निर्वादे याज्ञवल्क्यस्तमब्रवीत् । प्रश्नमेकं ममापि त्वं वद शाफल्य कामिकम् || शाप: पणोऽस्य वादस्य अनुवन्मृत्युमाव्रजेत् अथो सन्नोदितं प्रश्नं याज्ञवल्क्येन धीमता | शाकल्यस्तमविज्ञाय सद्यो मृत्युमवाप्नुयात् एवं स्मृतः स शाकल्यः प्रश्लव्याख्यानपीडितः । एवं वादश्च सुमहानासीत्तेषां धनार्थिनाम् ॥ ऋषीणां सुनिभिः सार्ध याज्ञवल्क्यस्य चैव हि ॥६० ॥६१ सर्वे: पृष्टांस्तु संप्रश्नाञ्शतशोऽय सहस्रशः | व्याख्याय वै मुने तेषां प्रश्नसारं महागतिः याज्ञवल्क्यो धनं गृह्य यशो विख्याप्य चाऽऽत्मनः । जगाम वै गृहं स्वस्थ ः शिव्यैः परिवृतो दशी ॥६२ देवसित्रस्तु शाकल्यो महात्मा द्विजसत्तमः । चकार संहिताः पञ्च बुद्धिमान्पदवित्तमः तच्छिष्या अभवन्तञ्च सुद्गलो गोलकस्तथा । खलीयश्च तथा मत्स्यः शैशिरेयस्तु पञ्चमः प्रोबाच संहितास्तित्रः शाकपूर्णरथीतरः । निरुक्तं च पुनश्चक्ने चतुर्थ द्विजसत्तमः ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥५६ ॥५७ ॥५८ ॥५६ किया । याज्ञवल्क्य की ऐसी बातें सुनकर शाकल्य मुनि ने क्रोध से मूच्छिन होकर अपनी इच्छा के अनुरूप उनसे प्रश्न किया |५३ ५५ | अब मेरे पूछे प्रश्नों का यथार्थ उत्तर बोलो । तदनन्तर उन दोनों ब्रह्मज्ञानी ऋषियों में महान् विवाद हुआ । शाकल्य ने याज्ञवल्क्य से एक सहस्र प्रश्न किये, जिनका उसी अवसर पर याज्ञवल्क्य ने सभी ऋषियों को सुनते हुये उत्तर दिया । इस प्रकार प्रश्न कर चुकने पर जब शाकल्य चुप हो गये तत्र याज्ञवल्क्य ने कहा, शाकल्य ! अब तुम मेरे केवल एक अभीष्ट प्रश्न का उत्तर दो किन्तु इस शास्त्रार्थ में एक वाजी यह रहेगी कि यदि प्रश्न का उत्तर न दे सकोगे तो मृत्यु को प्राप्त होगे | परम बुद्धिमान् याज्ञवल्क्य के प्रश्न का तात्पर्य शाकल्य की बुद्धि में नही आया; परिणाम स्वरूप वे शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गये । याज्ञवल्क्य के प्रश्न और व्याख्यान से पीड़ित होकर शाकल्य मुनि की मृत्यु हुई थी। इस प्रकार उस धन राशि के चाहने वाले ऋषियों एवं मुनियों के साथ याज्ञवल्क्य का महान् विवाद हुआ था । उस अवसर पर उन सभी मुनियों के संकड़ों क्या सहस्रों जटिल प्रश्नो की भली भाँति व्याख्या करके महाबुद्धिमान्, जितेन्द्रिय याज्ञवल्क्य ने समुचित उत्तर दिया था और अपने यश का विस्तार कर सभी शिष्यों के साथ उस धनराशि को लेकर प्रसन्न मन से अपने निवास की ओर प्रस्थान किया था। परम बुद्धिमान्, पदों के अर्थों को जानने वाले मुनियों में सर्वश्रेष्ठ, विप्रवर्य्य देवमित्र शाकल्य ने पाँच संहिताओं का प्रणयन किया था, उनके मुद्गल, गोलक, खलीय, मत्स्य और शंशिरेय नामक पाँच शिष्य थे |५६ ६४ | द्विजठ शाकपूर्ण रथीतर ने तीन सहिताओं का उपदेश किया