पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४७१

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४५२ वायुपुराणञ्च I५८ आयुर्मेधा बलं रूपमारोग्यं धर्मशीलत। सर्वसाधारण होते त्रेतायां वै भवन्त्युत ५४ वर्णाश्रमव्यवस्थानं तेषां ब्रह्म तथाऽकरोत् । पुनः प्रस्तु ता मोहतान्धर्मान्न आपलयन् ॥ ५५ परस्परविरोधेन सतुं तः पुनरन्वयुः। सनुः स्वायंभुवो दृष्ट्वा याथातथ्यं प्रजापतिः ५६ ध्यात्वा तु शतरूपायाः पुमन्स उदपादयत् । प्रियव्रतोत्तानपादौ प्रथमं ते महीपती १५७ ततः प्रभृति राजन उत्पन्ना दण्डधारिणः । प्रजानां रञ्जनाच्चैव राजानस्त्वभवन्नृपः प्रच्छन्नपापा ये जेतुमशयया मनुष्या भुवि । धर्मसंस्थापनार्थाय तेषां शास्त्रे तपोमयाः वर्णानां प्रविभागश्च त्रेतायां संप्रकीर्तिताः । संहिता ततो मन्त्रा ऋषिभिन्नह्णैस्तु ते । ॥६० यज्ञः प्रततश्चैवं तदा हृव तु दैवतैः। यागे कुशैर्जपैश्चैव सर्वसंभारसंवृतैः ६१ साधु विश्वभुजा चैव देवेन्द्रेण सहजत्र । स्वायंभुवेऽन्तरे देवैर्थतत्ते वक्श्रतताः सत्यं जपस्तपो वनं त्रेतायां धर्म उच्यते । क्रिया धीश्च हते सत्यधर्मः प्रवर्तते ॥६३ प्रजायन्ते ततः शूरा आयुष्मन्तो महाबलाः । न्यस्तदण्डमहाभागा यज्वानो ब्रह्मवादिनः ६४ पद्मपत्रायतरीक्षश्च पृथूरस्काः सुसंहितः । सिंहान्त महासत्वा मत्तमातङ्गगामिनः ६५ 1६२ आरोग्य, धर्म शीलता–ये सभी सर्व साधारण को त्रेता युग में प्राप्त थे। ब्रह्मा ने उन सभी प्रज़ाओ के लिये वर्णाश्रम की व्यवस्था वध रखी थी; किन्तु अज्ञानवश प्रजाओं ने वर्णाश्रमधर्म का अनुपालन नहीं किया और परस्पर-धर्म विषयक विवादों को खड़ाचार पुन: मनु के पास सभी लोग गये । प्रजापति स्वयम्भुव मनु ने उनको अपने पास समुपस्थित देख यथार्थ का चिन्तन किया और व्यान निमग्न हो शतरूपा नामक अपनी पत्नी में उस पुरुष ने सर्व प्रथम प्रियंव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्रों को उत्पन्न किया, जो दोनो सर्व-प्रथम राजा हुये । उसी समय से धरातल पर राजा लोग दण्ड की व्यवस्था करने वाले उपन्न होने लगे । प्रजा वर्ग का रंजन करने के कारण वे लोग राजा नाम से प्रसिद्ध हुये |५४५८गुप्त रूप से पापाचरण करने वाले मनुष्य पृथ्वी पर वशी भूत न हो सके अतः उनको वश्य करने के लिये घर्म की मर्यादा के स्थापनार्थो वर्गों का विभाग, तपोमय मन्त्र एवं संहिताओं का ऋषियों और ब्राह्मणों ने त्रेता युग में प्रचार किया। उसी समय देवताओं ने कुश, हवन, जप, एवं अन्यान्य सामग्रियों समेत यज्ञ का प्रचलन किया। इस प्रकार स्वाम्भुव मवन्तर में देवताओं ने विश्वभु महातेजस्वी देवराज इन्द्र के साथ यज्ञों का सर्वे प्रथम प्रवर्तन किया । त्रेता युग मे सस्य, जप, तपस्या एवं दान-ये प्रमुख रूपेण धर्म कहे जाते थे, किन्तु क्रिया (अनुष्ठान) धर्म का हास था, केवल सत्य धर्म को प्रतिष्ठा थी ॥५६६३उस त्रेता युग मे शूर वीरदीर्घायु, महाबलवान्योग्य दण्ड देने वाले महान् भाग्यशाली, यज्ञपरायण एवं ब्रह्मवादी राजा उत्पन्न हुये थे। उनके नेत्र कमल के दल की भंति विस्तृत एवं मनोरम रहते थे, वक्षःस्थल विणाल ये वे चुस्त एव फुर्तीले थे, सिंह के समान पराक्रमशाी, वेण्वा मत्तगयंद के समान