पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५३

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४३४ ५५ ५६ I५७ व्यालयज्ञोपवीती च सुराणामभयंकरः। दुदुभिस्वननिर्षपर्जन्यनिनदोपमः ।। मुक्तो हासस्तदा तेन नभः सर्वमपूरयत् तेन शब्देन महता वयं भीता महात्मनः । तदोवाच महायोगी प्रोतोऽहं सुरसत्तम पश्येतां च महामयां भयं सर्वे प्रमुच्यताम् । युवां प्रसूतौ गात्रेषु मम पूर्व सनातनौ अयं मे दक्षिणो बहुत्रंह्मा लोकपितामहः। वामो बाहुश्च मे विष्णु नित्यं युद्धेषु तिष्ठति । प्रीतोऽहं युवयोः सम्यग्वरं दद्मि यथेप्सितम् ततः प्रहृष्टमनस प्रणतौ पादयोः पुनः । ऊचतुश्च महात्मानौ पुनरेव तदाऽनघौ यदि प्रतिः समुत्पन्ना यदि देयो वरश्च न । भक्तिर्भवतु नो नित्यं त्वयि देव सुरेश्वर ५८ ।५ ६० भगवानुवाच एवमस्तु महाभगौ सृजतां विविधाः प्रजाः । एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत। एवमेष मयोक्तो वः प्रभावस्तस्य योगिनः । तेन सर्वमिदं सृष्टं हेतुमात्रा वयं त्विह ६१ ६२ चित्र विचित्र हो रही थी. शरीर पर विविध प्रकार के पुष्प चग्दन सुशोभित हो रहे थे । वृषभ पर समासीन थे, हाथ में धूल धारण किये थे, दण्ड एवं कृष्णमृग का चमं धारण किये कपाल लिये हुए थे । उस समय उनकी आकृति अतिघोर थी, सर्प का यज्ञोपवीत धारण किया था; पर ऐसा स्वरूप होते हुए भी वे देवताओं के लिए भयङ्कर नहीं प्रतीत हो रहे थे। उनके स्वर दुन्दुभि के एवं बादलो की गड़गड़ाहट के समान भीषण तथा गम्भीर थे । उस समय शङ्कर ने भीषण अट्टहास किया जिससे आकाशमण्डल हो व्याप्त गया ।५१५५महात्मा शंकर के उस भीषण नाद से हम लोग भयभीत हो गये । तदनन्तर महायोगी शंकर ने कहा, देवताओ मे श्रेष्ठ ! मै तुम दोनों पर प्रसन्न हूँ। भय को छोड़कर मेरी महामाया को देखो, पूर्वकाल मे तुम दोनों सनातन पुरुष मेरे शरीर से ही उत्पन्न हुए हो। यह लोकपितामह ब्रह मेरे दाहिने हाथ हैं, और यह नित्य युद्ध में स्थित रहने वाले विष्णु मेरे बाएँ हाथ हैं । मैं तुम दोनो पर अति प्रसन्न हूँ और मनोऽभिलापित वरदान दे रहा हूँ। शिव की ऐसी बातें सुनकर निष्पाप महात्मा । ब्रह्मा, विष्णु अति प्रसन्न मन से शिव के चरणों पर बारम्बार प्रणत हुए और बोले । देव ! यदि सचमुच हम पर आपकी प्रति उत्पन्न हुई है और वरदान देने के लिए प्रस्तुत है तो सुरेश्वर ! आपने हमारी भक्ति सर्वदा बनी रहे ५६६९ भगवान् बोले-महाभाग्यशाली ! जैसा तुम दोनों कह रहे हो, वैसा ही हो, विविध प्रकार की प्रजाओं की सृष्टि करते जाओ । भगवान् शंकर इतना कहकर वही अन्र्ताहंत हो गये । मैने उन योगी शंकर के प्रभाव का यह वर्णन तुम लोगों को सुना दिया उन्हीं भगवान् ने इस समस्त चराचर जगत् की ।