पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५१

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४३२ ४० त्वं कर्ता सर्वभूतानां कालो मृत्युर्मयोऽन्तकः । त्वं धारयसि लोकांस्त्रींस्त्वमेव सृजसि प्रभो ।।३७ पूर्वेण वदनेन त्वमिन्द्रत्वं (स्त्वं ) च प्रकाशसे । दक्षिणेन च वक्त्रेण लोकान्संक्षियसि प्रभो ।।३८ पश्चिमेण तु वक्त्रेण वरुणत्वं करोषि वै । उत्तरेण तु वयंत्रण सम्यत्वं च व्यवस्थितम् ||३६ राजसे बहुध देव लोकानां प्रभवाव्ययः। आदित्या वसवो रुद्र मरुतश्चाश्विनीसुतौ साध्या विद्याधरा नागाश्चारणाश्च तपोधनः। वालखिल्या महात्मनस्तपःसिद्धाश्च सुव्रताः ।।४१ त्वत्तः प्रसूता देवेश ये चान्ये नियतव्रताः । उमा सता सिनीवाली कुहूर्गायत्रिरेव च ? ४२ लक्ष्मीः कीतधृतिर्मेधा लज्जा क्षान्तिर्वपुः स्वधा। तुष्टिः पुष्टिः क्रिया चैव वाचां देवी सरस्वती ॥ त्वत्तः प्रसूता देवेश संध्या रात्रिस्तथैव च ४३ सूर्यायुतानामयुतप्रभाव नमोऽस्तु ते चन्द्रसहस्रगोचर । नमोऽस्तु ते पर्वतरूपधारिणे नमोऽस्तु ते सर्वगुणाकराय नमोऽस्तु ते पट्टिशरूपधारिणे नमोऽस्तु ते चर्मविभूतिधारिणे । गमोऽस्तु ते रुद्रपिनाकपाणये नमोऽस्तु ते शायकचक्रधारिणे नमोऽस्तु ते भस्मविभूताभूषिताङ्ग नमोऽस्तु ते कामशरीरनाशन । नमोऽस्तु ते देव हिरण्यवाससे नमोऽस्तु ते देव हिरण्यबाहवे ४६ ||४४ ४५ आप ही तीनों लोकों को धारण करते और सृष्टि भी करते है ।३५-३७ अपने पूर्व मुख से तुम इन्द्र रूप मे प्रकाशित होते हो, प्रभो ! दक्षिण मुख से सभी लोको का विनाश करते हो अर्थात् यम रूप मे विद्यमान् हो, पश्चिममुख से वरुण का कार्य करते हो एवं उत्तर मुख से चन्द्रमा का धमॅ तुममें व्यवस्थित है ३८३६॥ देव ! इस प्रकार तुम अनेक रूपों द्वारा इस समस्त जगत् के उत्प|दक रूप से शोभित होते हो, तुम्हारा कभी नाश नही होता । देवेश ! बारह आदित्य, आठो वसू, ग्यारहो रुद, उनचासों मरुत्, दोनों अश्विनीकुमार एवं इनके अतिरिक्त जो साध्य, विद्याधर, नागचरण, तपस्वी, बालखिल्य प्रभृति महात्मा तपोनिष्ठ हैं, वे सभी तुमसे उत्पन्न हुए है । अन्य जितने जगत् मे तपोनिष्ठ व्रतधारी है, वे सब भी तुमसे उस्पन्न हुए हैं । उमा, सीता, सिनीवाली, कुहू, गायत्र. लक्ष्मी, कीfत, धृति, मेधा लज्जा, शान्ति, वपु, स्वधा, तुष्टि, पुष्टि क्रिया, वाग्देवी सरस्वती, संध्या, रात्रि - ये सभी तुमसे उत्पन्न हुई हैं ।४०-४३। दस सहस्र सूर्य से भी अधिक प्रभावशाली तुम्हे हमारा नमस्कार है । हे सहस्रो के समान क न्तिशालिन् हम चन्द्रमा ! तुम् नमस्कार करते है । पर्वत के समान विशाल स्वरूप धारण करने वाले, सर्वगुणो के आकर स्वरूप तुम्हें हम नमस्कार करते है । हे पटिश के धारण करने वाले, चर्म एवं विभूति से विभूषित तुम्हे हमारा नमस्कार