पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४३०

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त्रिपञ्चाशोऽध्यायः ४११ ॥८० नक्षत्राणि च सर्वाणि नक्षत्राणि विशन्त्युत । गृहाण्येतानि सर्वाणि ज्योतींषि सुकृतात्मनाम् ॥७५, कल्पादौ संप्रवृत्तानि निमितानि स्वयंभुवा । स्थानान्येतानि तिष्ठन्ति यावदाभूतसंप्लवम् ॥७६ मन्वन्तरेषु सर्वेषु देवतायतनानि वै। अभिमानिनोऽवतिष्ठन्ति स्थाननि तु पुनः पुनः ॥७७ अतीतैस्तु सहातीता भाव्या भाव्यैः सुरासुरैः। वर्तन्ते वर्तमानैश्च स्थानानि स्वैः सुरैः सह ॥७८ अस्मिन्मन्वन्तरे चैव ग्रहा वैमानिकाः स्मृताः । विवस्वानदितेः पुत्रः सूर्यो वैवस्वतेऽन्तरे ॥७६ त्विषिसान्धर्मपुत्रस्तु सोमदेवो वसुः स्मृतः । शुक्रो देवस्तु विज्ञेयो भार्गवोऽसुरयाजकः बृहत्तेजाः स्मृतो देवो देवाचर्योऽङ्गिरःसुतः। बुधो मनोहरश्चैव त्विषिपुत्रस्तु स स्मृतः ८१ अग्विकल्पात्संजज्ञे युदऽसौ लोहिताधिपः। नक्षत्रऋक्षगामिन्यो दाक्षायण्यः स्मृतास्तु ताः ८२ स्वर्भानुः सहिकापुत्रो भूतसंतापनोऽसुरः। सोमसँग्रहसूत्रं तु कीतितास्त्वभिमानिनः t८३ स्थानान्येतान्यथोक्तानि स्थानिन्यश्चैव देवताः । शुक्लमग्निमयं स्थानं सहस्रांशोबिवस्वतः ॥८४ सहस्रांशोस्त्विषः स्थानमम्मयं शुक्लमेव च । आष्यं श्यामं मनोज्ञस्य पञ्चरश्मेर्गुहं स्मृतम् ॥८५ शुक्रस्याप्यम्मयं स्थानं सद्म षोडशरश्मिवत् । नवरश्नेस्तु यूनो हि लोहितस्थानमम्मयम् ८६ हरिश्ना(चाऽs)प्यं बृहच्चापि द्वादशांशोद्धे हस्पतेः। अष्टरश्मेरौ हं प्रोक्तं कृष्णं बुधस्य अम्मयम् ॥८७ रहते है, तव बुध बुधस्थान में, राह राहुस्थान में और सव नक्षत्रनक्षत्रस्थान में वर्तमान रहते हैं । पुण्यात्मा ग्रहों के ही सब ज्योति स्वरूप घर है |७१-७५। ब्रह्मा ने कल्प के आदिकाल में इन स्थानों का निर्माण किया है और ये प्रलय काल तक वर्तमान रहते है । सभी मन्वन्तरो मे ये देवगृह अभिमानी देवों के साथ वर्तमान रहते है ये स्थान बारंबार होते और विनष्ट होते है । बोते हुए देवों के साथ वे स्थान बीत गये. आने वालों के साथ उन्पन्न होंगे और वर्तमान देवगण उन स्थानों मे निवास कर रहे है। इस मन्वन्तर में ग्रहगण विमानों पर रह करते है ।७६-७८ई। वैवस्वत मन्त्रतर मे अदिति के पुत्र विवस्वान् सूयं धर्मपुत्र त्विषिमान् वसु चन्द्रमा, असुरों के पुरोहित भृगुपुत्र शुक्र देव, देव के पुरोहित अंगिरा के पुत्र महातेजस्वी बृहस्पति, त्विषिपुत्र मनोहर बुध. अग्नि के विकल्प से उत्पन्न युवा मङ्गल और नक्षत्रों का अनुगमन करने वाले दाक्षायणीगण एवं भूतो को पीडित करने वाले सिहिका पुत्र अमुर राहु है । ७६-८२३। इस तरह हमने चन्द्र-सूर्य-नक्षत्रादि अभिमानी देवों के सम्बन्ध में कहा। ये ही इन स्थानों के देवता है ओर ये हो इनके स्थान है । सहस्र किरण विवरवान् का स्थान अग्निमय शुक्लवर्ण है और हज़र किरणवाले चन्द्रमा का भी स्थान शुक्लवर्ण है; लेकिन जलमय है । पाँच किरणवाले बुध का स्थान जलमय और कृष्णवर्ण है ।८३-८५। सोलह किरणवाले शुक्र का भी स्थान जलमय है । नौ किरणवाले मङ्गल का स्थान लाल रंग का और जलमय है । बारह किरणवाले वृहस्पति का स्थान वृहत् और । आठ जलमय और कृष्णवर्ण राहु स्थान हरिद्वर्ण हैकिरणवाले शनि का स्थान है। का